आज आनंद को ढूंढते है

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आज आनंद को ढूंढते है
आज आनंद को ढूंढते है

आज आनंद को ढूंढते है

आइये आज आनंद को ढूंढते है और
उसे ढूंढ कर उसके साथ जीना शुरू करते है ।

एक साधु को किसी ने पूछा आपकी साधना क्या है? उसने कहा मेरी साधना है—जब मैं कपड़े पहनता हूं तो इतने आनंद से पहनता हूं जैसे जगत में इससे बड़ा कोई आनंद नहीं है, और जब मैं स्नान करता हूं तो इतने आनंद से स्नान करता हूं जैसे जगत में इससे बड़ा कोई आनंद नहीं है, और जब रात्रि मैं सोने जाता हूं तो मैं सारे जगत के प्रति इतना अनुग्रह अनुभव करता हूं कि मुझे एक दिन और जीवन का मिला और मैं इतने आनंद से सोता हूं जैसे सोने से बड़ा कोई आनंद नहीं है।
जीवन की छोटी—छोटी चीजों में जो आनंद को अनुभव नहीं कर सकेगा उसे कोई बड़े आनंद दुनिया में उपलब्ध नहीं होंगे। दुनिया में बड़े आनंद नहीं हैं। दुनिया में छोटे—छोटे आनंदों का इकट्ठा जोड़ बड़े आनंद को उत्पन्न कर देता है। और हमको सब चीजें छोटी मालूम होती हैं—कपड़ा पहनना, रास्ते पर चलना, चांद को देखना, एक फूल का खिलना—सब छोटी बातें हैं। मैं आपको कहूंगा ध्यान के साधक को अगर सच में भूमिका खड़ी करनी है तो उसे छोटी —छोटी बातों में आनंद को अनुभव करना शुरू करना चाहिए।
तो आप हैरान होंगे कि आपके आस—पास एक शांति का घेरा, मैत्री के विचार से जगत में बनेगा, स्वयं कर्म में आनंद लेने की वृत्ति से और भाव से—कर्म ही आनंद है, फल नहीं, इस भावना के आरोपण से—कर्मों में मिलेगा। और आप पाएंगे कि आपके छोटे—छोटे काम बोझ नहीं रह गए, वे आनंद हो गए हैं। छोटे से अंतर की बात है, और काम बोझ हो जाता है; और थोड़े से भाव के अंतर की बात है वह आनंद हो जाता है।

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