हमें गुस्सा क्यों आता है?

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हमें गुस्सा क्यों आता है?
हमें गुस्सा क्यों आता है?

हमें गुस्सा क्यों आता है?

किसी भी रिश्ते में कटुता आने पर हम इसके लिए किसी दूसरे को दोषी मानने लगते हैं,लेकिन यह बहुत जरूरी है कि पहले हम अपने अंतर्मन में झाके’

हम दूसरों के लिए बड़ी आसानी से कह देते हैं कि हमें उनका व्यवहार समझ नहीं आता या वो बिना बात के गुस्सा करते हैं।क्या हम जानते हैं कि हमें गुस्सा क्यों आता है? जब हम इस बात को समझ जाएंगे तो हमें दूसरों के गुस्से का कारण भी आसानी से समझ आ जाएगा।दूसरों को समझाने से पहले हमें स्वयं को जानना और समझना बहुत जरूरी है।यह तभी संभव है, जब हम अपने लिए समय निकाले।  अक्सर हम कहते हैं हमारे पास समय ही नहीं है।हमारे जीवन में जो लोग महत्वपूर्ण होते हैं, उनको हम अपना समय अवश्य देते हैं।जिनको हम समय नहीं देते उनके साथ रिश्तो में खटास आ जाती है।अपने मन के साथ रिश्ते के मामले में भी हमारा यही हाल होता है, जब हम खुद को ही अहमियत नहीं देंगे तो अपने मन को कैसे समझ पाएंगे? मन के साथ संबंध जोड़ने के लिए स्वयं को समय देना बहुत जरूरी है और जब हम ऐसा करेंगे तो धीरे-धीरे हम अपने से संबंध जोड़ पाएंगे और समझ पायेगे कि हमारा मन ऐसा क्यों सोचता है? यह बहुत आवश्यक है कि हम अपने मन को सकारात्मक की खुराक दें।

खुद से बातें करें

सुनने में यह बहुत आसान लगता है पर इसके लिए बहुत अभ्यास और एकाग्रता की जरूरत होती है। सबसे पहले अपने मन को शांत करें और यह विचार लाए कि मैं एक पवित्र और शक्तिशाली आत्मा हूं।मैं जो चाहूं वह सोच सकती हूं।

अपने मन पर मेरा पूरा अधिकार है।यह मेरा कहना मानना मानता है, क्योंकि यह मेरा है।मैं जहां चाहूं, जितनी देर के लिए चाहू इसे एकाग्र कर सकती हूं।

यह मेरी अपनी शक्ति है ऐसा सोचने के साथ ही पूरे दिन में कम से कम एक बार अपने मन मैं झाके कि अभी उसमें क्या चल रहा है?

भूल जाओ और आगे बढ़े

मान लीजिए, परिवार में छोटी सी बात पर नाश्ते के वक्त पति-पत्नी के बीच थोड़ी बहस हो गई।पति तो ऑफिस जाते ही कार्य में व्यस्त हो गया और वह भूल गया कि क्या हुआ था, लेकिन पत्नी जो कि घर पर थी, उसके मन में निरंतर यह विचार चलने लगता हैं कि उन्होने मुझसे ऐसा क्यों कहा? मैंने इतनी मेहनत से सुबह उठकर नाश्ता बनाया, फिर भी मुझे डांट दिया। उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिएथा ।ऐसा सोचने वाला कोई भी इंसान अगर बीच में रुक कर अपने मन को न टटोले तो नकारात्मक विचार उसे दिनभर परेशान करेंगे।इससे पति पत्नी के बीच मतभेद और बढ़ जाएगा।शाम को जब पति घर वापस आएगा तो पत्नी उसे सीधे मुह बात नहीं करेगी क्योंकि उसके मन में पूरे दिन सकारात्मक विचारों का प्रवाह चलता रहा,वह उसे पति के साथ सहज नहीं होने देगा।पति जो कि सुबह की बातें भूल चुका था, वह समझ नहीं पाता के पत्नी उसके साथ ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है?अगर ध्यान पूर्वक विचार किया जाए तो इस पूरे मामले में गलती किसकी है? उस पति की जिसने सिर्फ एक बार कुछ कहा या  पत्नी की,जिसने स्वय को दिन भर में हजारों बार कोसा? अगर हम इस बात के मर्म को आसानी से समझ जाएंगे तो  सबंधो के मामले में मधुरता  की नीव तक पहुंच पाएंगे।इसीलिए जब हमें यह मह्सुस हो की मन बहुत तेजी से चल रहा है तो रुक कर उसे देखें और ब्रेक लगा दे, नहीं तो हमारे रिश्ते में कटुता  बढ़ने लगेगी।अक्सर हम अपने मन को रोकते नहीं, क्योंकि हम यह सोचते हैं कि सामने वाला व्यक्ति गलत था।

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