इतिहास केझरोखेसेसुभाषचंद्र बोस चाहते थे पूर्ण स्वराज्य के लिये सशस्त्र संघर्ष में आरएसएस का सहयोग

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Subhash Chandra Bose wanted RSS support in armed struggle for complete self-rule

इतिहास के झरोखे से !!!

सुभाषचंद्र बोस चाहते थे पूर्ण स्वराज्य के लिये सशस्त्र संघर्ष में आरएसएस का सहयोग !!

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक में जानकी दास बोस के यहां हुआ था। उच्च शिक्षा के लिये वह इंग्लैंड गए और वहां 1920 में इण्डियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की मगर अंग्रेज सरकार की नौकरी उन्हें रास नहीं आई और छोड़ दी। अपने पिता को पत्र लिख कर उन्होंने स्वतन्त्रता संघर्ष में भाग लेने की इच्छा से आगाह कर दिया था।
1921 में गांधी जी द्वारा चलाए असहयोग आन्दोलन में वह कूद पड़े और गिरफ्तार हो मांडले जेल भेज दिये गये जहां से वह 16 मई 1927 को अस्वस्थता के कारण रिहा कर दिये गये। उसी वर्ष दिसम्बर में कलकता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में वह शामिल हुए जिसमें पं. मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसमें ‘औपनिवेशक स्वराज्य को लक्ष्य निर्धारित करने का प्रस्ताव था। सुभाष बोस ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया और पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य अपनाने बारे संशोधन पेश किया जो रद्द कर दिया गया।
इसी अधिवेशन में नागपुर से आरएसएस संस्थापक डा. हेडगेवार भी मध्य भारत कांग्रेस के प्रतिनिधि के नाते मौजूद थे जिन्होंने 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पेश किया था जो अस्वीकार कर दिया गया था। स्वाभाविक था सुभाष बाबू डा. हेडगेवार के पास गए और उन्होंने क्रांतिकारी बाबा राव सावरकर के साथ सुभाष बाबू से देश की परिस्थिति पर विचार विमर्श किया और पूर्ण स्वराज्य बारे उनकी कल्पना और योजना जानी।
साथ ही उन्होंने सुभाष बाबू को स्वाराज्य प्राप्ति के लक्ष्य को दृष्टि में रखकर 1925 में जानकारी भी दी ताकि अनुकूल समय आने पर अंग्रेज सरकार के विरुद् गुरिल्ला संघर्ष हो सके।
कलकत्ता अधिवेशन के थोड़े समय बाद ही सुभाष बाबू फिर गिरफ्तार कर लिये गये मगर अस्वस्थता के कारण ही 1933 में रिहा कर दिया गया। तब वह उपचार के बहाने यूरोप चले गए जहां उन्होंने उस समय विश्व नेता हिटलर, मसोलिनी और डा. वालेरा से मिल कर देश की स्वतन्त्रता के लिये मदद की सम्भावनाएं टटोली।
स्वास्थ लाभ कर लौटे तो फिर से कांग्रेस में अग्रणी बन सक्रिय हो गए। यहां तक कि वह गांधी जी के विरोध के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए मगर प्रमुख नेताओं के असहयोग के चलते पद से त्यागपत्र दे दिया।
उधर उन्होंने डा. हेडगेवार से फिर मिलने की सोची और जब वह जुलाई 1939 में बम्बई में गए तो उन्होंने 8 जुलाई को अपने निकटवर्ती बसंतराव राम राव संझागिरी को डा. हेडगेवार से मिलने के लिये देवगिरी भेजा जहां वह निमोनिया के उपचार के लिये ठहरे ते। संझगिरी बाबा हुद्दार के साथ डा. हेडगेवार से मिले।
उनकी अस्वस्थता के कारण केवल आधा घंटा ही वार्ता हुई जिसमें उन्होंने डा. हेडगेवार से मिलने की इच्छा और योजना से अवगत करवाया। तब हेडगेवार ने विनम्रता से कहा कि शांति से गम्भीर विचार विमर्श के लिये नागपुर आएं। संझगिरी ने बम्बई लौट कर सुभाष बाबू की स्थिति बताई और निमन्त्रण से आगाह किया। मगर 12 जुलाई को संझगिरी ने डा. हेडगेवार को पत्र लिखकर सूचित किया कि किन्हीं अपरिहार्य कारण से नागपुर जल्दी आना सम्भव नहीं और यदि वह 20 जुलाई को एक दिन के लिये बम्बई आ सकें तो अच्छा रहेगा क्योंकि उसी रात सुभाष बाबू वहां से जाने वाले हैं। मगर डा. हेडगेवार अस्वस्थता के कारण 20 जुलाई को जा नहीं पाए और यह दूसरी भेंट रह गई।
उधर यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के आसार बढ़ रहे थे। सुभाष बाबू ने समय रहते डा. हेडगेवार से भेंट करने के लिये 20 जून 1940 को नागपुर वहां के संघचालक बाबासाहब घटाटे के घर डॉ रूइकर के साथ पहुंचे जहां डा. हेडगेवार तेज बुखार से पीडित थे। वहां उपस्थिति स्वयंसेवक ने उन्हें उनकी खराब स्थिति से आगाह किया और कहा कि उनकी अभी आंख लगी है, यदि कोई महत्वपूर्ण काम है तो जगा देता हूँ। सुभाष बाबू यह कह कर लौट गए कि फिर आऊंगा।
थोड़ी देर बाद डा हेडगेवार की झपकी टूटी तो स्वयंसेवक ने सुभाष बाबू के आने के बारे बताया। डा. हेडगेवार बड़े दुखी हुए क्योंकि वह 19 जून की सायं से ही उनकी प्रतीक्षा में थे।
विडम्बना यह कि इधर 21 जून 1940 को ही डा. हेडगेवार का निधन हो गया। उधर उसी वर्ष विश्वयुद्ध शुरू हो गया। सुभाष बाबू नजरबन्द कर दिये गये मगर अपनी सोच के अनुसार युद्ध के अवसर का लाभ उठाने के लिये वह अंग्रेज सरकार की नजर बचा कर खिसक गए और काबूल के रास्ते इटली के पासपोर्ट पर रूस और वहां से जर्मनी जा पहुंचे।
वहां उन्हें जानकारी मिली कि जापान में रह रहे रास बिहारी बोस सिंगापुर में भारतीयों पर आधारित सेना खड़ी कर रहे हैं। वह तुरन्त डुबकनी कश्ती के जरिये सिंगापुर पहुंच गए जहां भारतीयों और भारतीय जंगी कैदियों पर आधारित इण्डियन नैशनल आर्मी खड़ी की और दक्षिणपूर्वी एशिया में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्धरत हो गए।
दुर्भाग्य कि अंग्रेज विश्व युद्ध में विजयी हो गए। सुभाष बाबू पकड़े तो नहीं गए मगर समाचार फैला कि वह रूस जाते हुए हवाई हादसे में मारे गए हैं। यद्यपि सुभाष बाबू स्वदेश लौट नहीं पाए मगर उनका सैन्य संघर्ष अंग्रेजी सम्राज्य के कफन में आखरी कील सिद्ध हुआ और देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। राष्ट्र आज उस महान राष्ट्र नायक को श्रद्धापूर्वक नमन करता है।

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