कहानी : मूर्खता का परिणाम

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कहानी : मूर्खता का परिणाम

बात बंगाल की है।एक भरा-पूरा परिवार था जो दीपावली की अमावस्या की रात में काली देवी की पूजा करता था।उस समय काली जी को पहनाने के लिए सोने का मुकुट बनाया गया था वे  लोग बड़े जमींदार थे।धूमधाम से पूजा होती थी।एक दिन उस परिवार का बूढ़ा मुखिया मर गया। उसके दोनों पुत्र सारी संपत्ति का बंटवारा करके अलग अलग रहने लगे,शेष बचा काली जी का स्वर्ण-मुकुट।पूजा के लिए भी किस पुत्र के पास रहे? काली माता के मुकुट को  दो टुकड़ों में बाटना तो ठीक नहीं था।अत: एक निर्णय हुआ कि दीपावली की रात जब काली की पूजा संपन्न हो जाए तो पदमा नदी में दो नावे छोड़ी जाये।एक-एक नाव पर एक-एक भाई और उसके साथी और पुरोहित बैठे।इस नौका दौड़ में सूयोर्दय के समय जिसकी नाव आगे निकल जाए,उस वर्ष पर काली का मुकुट उसी भाई के पास रहेगा।शर्त दोनों भाइयों ने मान ली और दीपावली की रात पूजा समाप्त होने पर दोनों भाई अपनी अपनी नाव में बैठ गए साथ में उनके साथी और पुरोहित भी।आधी रात के अंधेरे में दोनों नावों में दौड़ प्रारंभ की।दौड़ से पहले एक बात और हुई कि दोनों नाव के नाविकों को उन लोगों ने जोश दिलाने के लिए भरपूर मदिरा (शराब) पिलायी।उन भाइयों, और साथी बाबूओ ने भी मदिरा पी और नावों परतने तंबूओ के अंदर जा बैठे। नावों की दौड़ में दोनों नावों के बाबू लोग नशे में चिल्ला-चिल्लाकर नाविकों को उत्साह दिलाते रहे।।लेकिन सूर्य की पहली किरण फूटी तो दोनों पुरोहितों के शंख एक साथ ही गूंज उठे। क्या दोनों नवों बराबर रही ? यह क्या हुआ ? बात जानने के लिए दोनों भाइयों ने जब तंबूओ से सिर निकाल कर बाहर झाका तो देखा-नावे तो जैसे रात में पदमा नदी के किनारे खड़ी थी, वैसे ही वहीं खड़ी है।नशे में नाविक उन्हें खोलना ही भूल गए थे।  अपना मन मूर्खता और लालच के जिस खूंटे से बांध रखा है, वहां से हटाते या खोलते ही नहीं।परिणाम यही होता है कि हमारे परिश्रम का वैसा फल मिलता ही नहीं जैसा अपेक्षित होता है। मूर्खता का परिणाम

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