आज 21 अक्टूबर को आज़ाद हिंद फौज के 75 वर्ष मनाना कोई सामान्य बात नहीं है। आज लाल किले पर तिरंगा फहराकर श्री नरेन्द्र मोदी ने जो किया,
इसे करने में देश 75 साल देरी कर गया और इस बीच 12 प्रधानमंत्री यह बिना किये सिधार या पधार गए। जिन कांग्रेसी-कामरेड गठजोड ने नेता जी सुभाष को ‘तोज़ो का कुत्ता’ कभी कहा था, उनके वैचारिक कुनबे के मुंह पर यह करारा थप्पड़ है। सुभाष बोस 1938 में राष्टीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, 1939 में बीमार होने पर स्ट्रेचर पर लाये गएऔर फिर भीअध्यक्ष चुने गए, लेकिन उन्हें जिन लोगों ने उन्हें ज़लील कर त्यागपत्र देने को मजबूर किया, उस दुष्ट मंडली के वंशजों को सदा के लिए त्यागपत्र थमाने का आज दिन है।
आज याद करवा दें, जिस नेताजी पर श्याम बेनेगल ने फ़िल्म बनाई थी The Forgotten Hero, उस भूले-बिसरे हीरो को याद कराने का त्योहार है आज! लगे हाथ बताते चले कि नेता जी पर सात फिल्में और दर्जनों डॉक्यूमेंटरी बनाई गई थी। क्या ये फेसबुक-व्हाट्सअप की नई पीढ़ी जानती है? उसे याद कराना है। आज इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लेमेन्ट एटली के वो शब्द याद करने का दिनहै कि “हमारे चुपचाप जल्दी भारत छोड़ने का कारण गांधी जी के आंदोलन नहीं, बल्कि सुभाष बोस के विदा होने के बाद भी उनकी प्रेरणा से चलने वाले सैनिक और जलसेना के विद्रोह थे।” सोचिए आज़ादी किसने दिलवाई!
नेता जी का आज लालकिले पर स्मरण करना उस दुष्प्रचार की धज्जियां उड़ाता है कि ‘आजादी बिना खड़ग बिना धार’ मिली। बल्कि दीपक जतोई का शाखा वाला गीत भी आज दोहराना है “अमर शहीदां ने सिर देकेे, बन्निय मुढ कहानी दा, आज़ादी है असल नतीजा वीरां दी कुर्बानी दा।” बेशक गांधी जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता परंतु हज़ारो क्रांतिकारियों को नजरअंदाज करने का पाप, जो अब तक सरकारों से होता रहा, उसके पश्चाताप का भी आज मौका है। इस देश का असली सत्य है कि हमारे “हाथ मे माला भी है, खंडा भी है, रूह में नानक भी है, बंदा भी है।” सभी देवी देवताओं के हाथ मे शस्त्र भी, शास्त्र भी दोनों रहते है। सुभाष बोस उसी परम्परा के प्रतीक हैं। आओ एक बार बोलें “सुभाष बोस अमर रहे, अमर रहे, अमर रहे।