जेएनयू में क्या हुआ?
क़रीब 500 की संख्या में वामपंथी गुंडे हॉस्टलों में घुस गए और ABVP के छात्रों को ढूँढ-ढूँढ कर मारा। चूँकि छात्रसंघ में भी उनका ही राज़ चलता है और विश्वविद्यालय उनका गढ़ है, उन्हें गुंडे जुटाने में समस्या नहीं हुई। अधिकतर उपद्रवी बाहर से बुलाए गए थे। उन्होंने हॉस्टल के शीशों को तोड़फोड़ डाला और यूनिवर्सिटी की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इसके बाद छात्रों के कमरों में घुस-घुस कर उन्हें मारा गया। लाठी-डंडे और लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया गया। यहाँ तक कि महिलाओं को भी नहीं छोड़ा गया। बीच-बचाव करने वाले गार्ड्स और प्रोफेसरों की भी धुलाई की गई। ये ड्रामा 8 घंटे तक चला। सभी गुंडों ने मास्क से अपना चेहरा ढक रखा था।
साज़िश कितनी गहरी थी?योगेंद्र यादव तुरंत जेएनयू पहुँच गया। मीडिया में बिना किसी पुष्टि के चलाया जाने लगा कि ABVP वाले हिंसा कर रहे हैं। एक छात्र नेता हैं शाम्भवी। उन्होंने ब्लैक एंड वाइट चेक वाली शर्ट पहन रखी थी। एक वामपंथी गुंडी को उन्हीं से हूबहू मिलते कपड़े पहनाए गए और मास्क लगा दिया गया। ताकि ऐसा लगे कि वो शाम्भवी ही है। बाद में पता चला कि शाम्भवी को ख़ुद काफ़ी चोटें आई हैं और वो हॉस्पिटल में भर्ती हैं। उनकी झूठी वायरल फोटो को जम कर शेयर किया गया। वामपंथी हैंडलों के फॉलोवर ज़्यादा हैं, इसीलिए पीड़ित छात्रों को अपनी बात जनता तक पहुँचाने में देर हुई। ‘कागज़ नहीं दिखाएँगे’ वाले अब चेहरा नहीं दिखाना चाहते, इसीलिए मास्क लगाया
वामपंथी क्या कह रहे हैं? वो क्यों भरोसेमंद नहीं हैं?
वामपंथियों ने पहले तो कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ किया ही नहीं है। बाद में ख़ुद को फँसते हुए देख कर उनलोगों ने दावा किया कि ABVP वाले ही हिंसा कर रहे हैं। कई ABVP के छात्र हॉस्पिटल में हैं। कुछ के सिर में चोटें आई हैं तो कुछ के हाथ टूट गए हैं। क्रिया की प्रतिक्रिया में जो थोड़े-बहुत वामपंथी घायल हुए हैं, उन्हें दिखा कर वामपंथी सहानुभूति लूटना चाहते हैं। हमनें देखा है कैसे ये लोग जैकेट और हिजाब पर मरहम-पट्टी लगा कर ‘पुलिस की बर्बरता’ की बातें करते पाए गए। इसीलिए, इन पर भरोसा करना बेकार है।
ये पुलिस पर पत्थर फेंकते हैं। आपको याद है, जामिया में ये गुंडे कम्बल वगैरह लेकर आए थे, ताकि आँसू गैस के गोलों से बचा जा सके। इनका काम ही उपद्रव है, ये इसमें अभ्यस्त हैं। इसी तरह यहाँ भी पूरे योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया।
इकोसिस्टम क्या कर रहा है? आगे क्या करेगा?
अरविन्द केजरीवाल ने तुरंत ट्वीट कर दिया कि जेएनयू कैम्पस में ही छात्र सुरक्षित नहीं हैं तो कहाँ रहेंगे? उन्होंने दिल्ली पुलिस से हस्तक्षेप की माँग की। जब वही दिल्ली पुलिस जामिया में हस्क्षेप करती है और स्थिति नियंत्रित करती है तो यही केजरीवाल बोलता है कि छात्रों पर अत्याचार हो रहा। स्वरा भास्कर सरीखों ने सोशल मीडिया पर लोगों को भड़काया। अर्बन-नक्सल दुनिया भर को चिल्ला-चिल्ला कर बता रहे हैं कि ये ‘छात्रों के ख़िलाफ़ हिंसा’ है। इससे ये सन्देश जाएगा कि सरकार और पुलिस ने ऐसा किया है। ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बरगलाया जाएगा। अगर एक भी एजेंसी वगैरह ने इसकी निंदा कर दी या विदेश से एक भी सेलेब्रिटी ने बयान दे दिया तो इसे भारत सरकार के ख़िलाफ़ प्रचारित किया जाएगा।
वामपंथियों की कोशिश है कि इससे छात्रों के बीच मारपीट का रंग न देकर ‘छात्रों पर अत्याचार’ के रूप में दिखाया जाए। बड़ी-बड़ी बातें की जाएँगी। अँग्रेजी में लिखा जाएगा कि ‘ये घटना निंदनीय है’ लेकिन किसने किया, इस पर चुप्पी साध ली जाएगी। इससे नकारात्मक माहौल तो बनेगा कम से कम। ऐसा प्रतीत होगा कि दंगे और उपद्रव इस देश की नियति बन गई है।
वामपंथी गुंडों ने आखिर ऐसा क्यों किया?
जेएनयू वालों का पढ़ाई से कुछ लेनादेना नहीं है, ख़ासकर वामपंथी गैंग का। उन्होंने ‘फी हाइक’ को मुद्दा बना कर विरोध प्रदर्शन किया। वैज्ञानिकों के साथ बदतमीजी की। एक बीमार प्रोफेसर के एम्बुलेंस को घेर कर उसके बीवी-बच्चों के सामने ही उसकी जान को संकट में डाला गया। महिला पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। यूनिवर्सिटी ने साफ़ कह दिया कि परीक्षा की तारीख आगे नहीं बढ़ेगी। रजिस्ट्रेशन को लेकर वो नाराज़ हो गए। वो चाहते थे कि यूनिवर्सिटी में कोई पठन-पाठन का कार्य न हो। जब ABVP के व अन्य छात्रों ने इसका विरोध किया तो उन्होंने रजिस्ट्रेशन काउंटर का इंटरनेट ऑफ कर दिया कम्युनिकेशन रूम में घुस कर। अकादमिक कैलेंडर को लेकर वीसी की सख्ती को देखते हुए उन्होंने दंगों की साज़िश रची ताकि विश्वविद्यालय में पढ़ाई सम्बन्धी कोई कार्य न हो।
भारत सरकार ने CAA को लेकर आज से ही जनसम्पर्क अभियान शुरू किया है। इसके तहत 3 करोड़ घरों में जाकर लोगों को फ़ायदे के बारे में बताया जाएगा। मिस्ड कॉल कैम्पेन को तगड़ा समर्थन मिला है। घबराए वामपंथी अब इसी मुद्दे पर आगे बढ़ेंगे क्योंकि उनके दंगों से अब भाजपा को उलटा फायदा ही हो रहा है। एक साधारण क़ानून को अब देश की जनता जानेगी, इससे बौखलाए वामपंथी बदल लेना चाहते हैं।