कहानी – व्यवहार से बनती है पहचान

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व्यवहार से बनती है पहचान
व्यवहार से बनती है पहचान

व्यवहार से बनती है पहचान

कमल ने स्कूल से आते ही बैग को दीवार पर दे मारा। उसने ऐलान कर दिया,कल से मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।माँ ने सुना तो हैरान रह गई, लेकिन उसने उस समय इस विषय पर कमल से कोई बातचीत नहीं की। थोड़ी देर बाद कमल का गुस्सा शांत हो गया। मां ने सोचा स्कूल की बात पूछने का यही ठीक समय है। तो प्यार से पूछा कमल आज स्कूल में कुछ हुआ क्या? तुम्हारे बोर्ड्स एग्जाम भी सिर पर है। कमल बोला हां मां। स्कूल में कुछ लड़के बहुत शरारती हैं। उन्होंने मेरा नाम ही गरीब रख दिया है। कहते हैं कि तुम गरीब हो तभी तो तुम रोज रिक्शे में बैठ कर स्कूल आते हो। हमारे ड्राइवर रोज हमें कार से स्कूल छोड़ने आते हैं। मां अब तक सारी बातें समझ चुकी थी। कमल का गुस्सा भी उन्हें जायज लगा। उन्होंने सोचा कि जरूर वह ना समझ बच्चे होंगे, जो पैसो से ही दूसरे लोगों को तोलते होंगे। माँ ने कमल को समझाया कि जहां एक और गरीबी की कोई सीमा नहीं है वैसे ही अमीरी की भी कोई सीमा नहीं होती है। मां आगे कहने लगी, तुम्हारे स्कूल में पढ़ने वाले आमिर बच्चों से भी अधिक अमीर बच्चे हमारे देश-समाज में मौजूद हैं। तो क्या वो लोग ज्यादा अच्छे हो गए? नहीं ना। आदमी अपने व्यक्तित्व के बल पर बड़ा-छोटा बनता है। इसलिए तुम्हें बेकार की बातों पर काम देने की बजाय अपने काम और पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। कमल को भी मां की बातें सही लग रही थी। उसमें उसी समय स्कूल की द बेस्ट स्टूडेंट का खिताब पाकर अपनी पहचान खुद बनाने का निश्चय कर लिया। इस कहानी में आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर बच्चे दो वर्गों में बाटे हुए दिखाई देते हैं। मध्यम और उच्च वर्ग समाज में विशेषकर शहरी अथवा महानगरीय क्षेत्र में जहां भौतिक समृद्धि अधिक होती है, बच्चों में अच्छे गुणों के विकास पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है , जबकि बचपन में माता-पिता के लिए दिये  संस्कार व्यक्तित्व विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। कहावत भी है जैसा बोओगे, वैसा पाओगे। इसका मतलब है कि अगर बचपन में अच्छे संस्कार दिए जाएं तो किशोर अवस्था या युवा अवस्था में दूसरों के साथ निश्चित तौर पर बढ़िया व्यवहार करेंगे। उसके लिए रुपए पैसे बहुत अधिक महत्वपूर्ण नहीं होंगे, जब की स्थिति बिल्कुल विपरीत नजर आती है। अच्छे संस्कारों के अभाव में संपन्न घरों के किशोर  अंहकार और घमंड में जीते हैं। वह दूसरों को  अपेक्षित करने व नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। ओर ऐसे किशोर भी हैं, जो महंगी चीजें को प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। इसी वजह से वह स्वय को अपेक्षित मानते हैं या हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। स्थिति तब और भयावह हो जाती है, जब भी असमर्थ किशोर हीन भावना से ग्रस्त होकर अपने माता पिता अथवा अभिभावको की विशेषता को नहीं समझते हैं और दोषी मान लेते हैं। वह अपने बलबूते सब कुछ हासिल करने की चाहत के साथ गलत राह पर चलने में भी नहीं झिझकते  हैं।नतीजे के तौर पर इनमे से कुछ इस हद तक स्वार्थी हो जाते हैं कि वह मानवीय संबंधों की बजाए रुपये-पैसे को ही तवज्जो देते हैं। यदि हम कहानी पर गौर करें, तो कमल ने क्षणिक आवेश में भले ही स्कूल ना जाने का निर्णय लिया लेकिन मां के समझाने पर वह मान जाता है तथा सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान देने की बात करता है। यह उसकी मां की छोटी उम्र में दिखाए और बताए गए संस्कार ही हैं, जिनकी मदद से कुंठित नहीं होता है। स्वयं को कमत्रण आकने की वजाए विशिष्ठ बनने में लग जाता है। यह सच है कि भौतिक साधनों के पीछे भागने की बजाए, हमें अपनी रुचि के कार्यों में मन लगाना चाहिए। रुपए-पैसे के बल पर व्यक्ति को तोलने की बजाए सुंदर व्यक्तित्व को तवज्जो देना चाहिए, दरअसल पैसे से आदमी की पहचान नहीं होती है आदमी की पहचान बनती है उसके बढ़िया व्यवहार से उसके पर उपकार  के कामों से।

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