ज्ञान की उम्र

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ज्ञान की उम्र
ज्ञान की उम्र

 

 

ज्ञान की उम्र

बचपन से मेरा स्वभाव रहा हैकि कभी दूसरों की तकलीफ पर ज्यादा भावुक नहीं हुई और ना ही मदद करने जैसी बात सोची| आज भी करीब 26 साल पुरानी एक घटना जब याद आती है तो खुद को बहुत शर्मिंदा महसूस करती हो और करती हूं उस सीख को जिसे मेरी 11 साल की बेटी ने मुझे देकर मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया था|

गर्मी की छुट्टियां हो गई थी और बच्चों ने अपने नाना जी के यहां जाने की रट लगा रखी थी, सो मैंने बच्चों को मायके ले जाने का प्रोग्राम बनाया|मैंने सोचा कि सुबह 5:00 बजे वाली बस से निकल जाऊंगी तो सही रहेगा| बस उस रात पूरी तैयारी करके सुबह 3:45 बजे का अलार्म लगा कर सो गई पता नहीं क्या हुआ कि सुबह अलार्म ही नहीं बजा और जब आंख खुली तो 4:30 रहे थे| मेरे जागते ही बच्चे भी जाग गए पर मैंने देर होने की वजह से प्लान कैंसिल करना उचित समझा फिर भी बच्चे आज ही जाने की जिद कर रहे थे|ऐसे में जल्दी जल्दी तैयार होकर बस स्टॉप पहुंची तो पता चला कि सुबह डायरेक्टर जाने वाली बस जा चुकी है और अब सिर्फ पैसेंजर बस जाएगी, जो हर छोटे-बड़े गाव से होती हुई राय रायबरेली पहुंचेगी|यह सुनकर बहुत गुस्सा आया कि अगर इन बसों से जाती हूं तो समय बहुत लगेगा पर घर से आ चुकी थी तो एक बस में बैठ गई|जून का महीना और अंधी वाली तेज गर्मी उसमें भी सवारियों से खचाखच भरी बस| ऐसा लग रहा था कि आसमान से आग बरस रही हो| गर्मी की वजह से सारे यात्री  परेशान थे| दोपहर करीब 2:30  बजे मैं रायबरेली पहुंची बस से निकल घर पहुंचने के लिए साधन की तलाश शुरू की |उस दौर में रिक्शा ही शहर के मोहल्लों तक पहुंचने का साधन होता था| काफी इंतजार के बाद कुछ रिक्शावाला आए लेकिन उनमें से चलने को राजी  नहीं हुआ बच्चे भी भूख और गर्मी से बेचैन हो रहे थे| तभी एक रिक्शावाला आता देखा तो उम्मीद बंधी वह रिक्शावाला बूढ़ा और काफी कमजोर था मैंने जैसे ही रुकने का इशारा किया| उन्होंने मुझसे सवाल किया कि बिटिया कहां जाना है मैंने घर का पता बताया तो वह चलने को राजी हो गई| मैंने स्वभाव के अनुसार थोड़ा झुनझुनाते हुए पहले किराया बताने को कहा तो वह बोले की दूरी भी ज्यादा है और सवारी भी चार है तो 10 रुपये  दे देना अब मैंने मोलभाव करना शुरू किया कहा कि 8 रुपये  दूंगी और चौराहे के पास गली में मेरा घर है वहां तक पहुंचाना होगा| वह बहुत धीमे स्वर में बोले कि कोई बात नहीं चलो बैठो दुबला पतला बूढ़ा रिक्शावाला हम लोगों को लेकर चला छोटी बड़ी 4 सवारियां और उसके साथ दो बड़े बैग होने के कारण वह बड़ी ताकत से पेंडल मार रहे थे, पर रिक्शा तो जैसे रेंग रहा हो| चिलचिलाती धूप में हम पसीने पसीने हो रहे थे फिर रिक्शेवाले पर क्या गुजर रही थी यह तो वही जाने लेकिन मुझे इसमें कोई मतलब नहीं था मैं तो बस किसी तरह घर पहुंचना चाह रही थी घर से करीब 100 मीटर पहले चढ़ाई पड़ती है, तो वह चढ़ाई पर रिक्शा चलाते हुए हाफ ने लगे और उतरकर रिक्शा खींचने लगे तभी मेरी बड़ी बिटिया जो 11 साल की थी यह कहते हुए रिक्शे से उतर गई कि हम लोग स्कूल जाते हैं तो चढ़ाई पर बच्चे उतर जाते हैं और पीछे से धक्का भी दे देते हैं क्योंकि रिक्शे वाले भैया थक जाते हैं इसके बाद छोटी बेटी भी उतर गई और दोनों रिक्शे में धक्का लगाने लगी मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उन्हें डांटते हुए कहा कि चलो रिक्शा में बैठो अब नाना जी का घर आ गया है लेकिन बिटिया नहीं मानी घर पहुंच कर मैंने 8रुपये निकाले तो बड़ी बेटी कहने लगी थी मम्मी पूरे 10 रुपये  दे दो बाबा कितने बड़े हैं बिल्कुल नाना जी किस तरह इतनी गर्मी में हम लोगों को बिठा कर लाए हैं| बेटी की बात सुनकर मैं निरुत्तर हो गई जो बात अब तक सीख नहीं पाई थी वह आज मेरी बेटी ने समझा दी थी मैंने रिक्शेवाले को 10  रुपये दिए और पेठा खिलाकर पानी पिलाया तो उसने भी राहत की सांस ली|

इस घटना के माध्यम से मैं कहना चाहती हूं कि ज्ञानी व्यक्ति की कोई उम्र नहीं होती कई बार जिन बातों को हम पढ़ लिखकर जीवन के ढेरों अनुभवों से भी नहीं सीख पाते, उन्हें छोटे बच्चे सिखा जाते हैं|

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