कविता :तब देख बहारें होली की

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कविता तब देख बहारें होली की

कविता तब देख बहारें होली की
जब फागुन रंग चमकते हो, तब देख बहारें होली की।
और दफ के शोर खड़कते हो, तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हो, तब देख बहारें होली की।
खूम शीशे-ए – जाम छलकते हों, तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो, तब देख बहारें होली की।
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हो गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ- अदा के ढंग भरे
दिल फूल देख बहारों को, और कानों में अहम भरे
कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुँह चंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हो, तब देख बहारें होली।
गुलजार खिले परियों के और मजलिस की तैयारी हो।

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