कहानी : चोरी का दंड

0
787

कहानी : चोरी का दंड

वे पति पत्नी थे।प्रातः टहलने निकले।बात सतारा नगर की है।पति थे प्रसिद्ध न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे और पत्नी थी रमाबाई।वह नासिक के रहने वाले थे।न्यायाधीश के नाते सतारा जिले में प्रवास पर आए थे।उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।बड़े विद्वान और त्यागी थे।दूध का दूध, पानी का पानी अलग कर देने जैसा उनका निर्णय रहता था।इसी से उनके नाम के साथ न्यायमूर्ति विशेषण जुड़ा था।वह जब ठहरने के स्थान से चले, तब रमाबाई से कहा-‘मैं पैदल चल रहा हूं, तुम कार से आकर आगे मिलना। रमाबाई उनके चले जाने के बाद तैयार हो पाई और चली कार पर बैठकर।

चलते चलते मार्ग में आम का बाग पढ़ा-देखा कच्चे आम डालो पर लदे हैं।सोचा-कुछ तोड़ ले। कार रोककर चाबुक उठाया और आम गिराऐ।कुछ ही आम तोड़े थे तभी देखा की कलाई में जो स्वर्ण कंगन पहने थी, वह है ही नहीं।वेद झटका लगने से कहीं गिर गया था।बहुत इधर-उधर खोजा,ना मिला।उधर रानडे के पास जाने में भी देरी हो गई।बड़ी पछतायी।तब तक नारडे दो मिल आगे जाकर ठहर गए थे और रमाबाई की प्रतीक्षा कर रहे थे इतनी देर कैसे हुई ? वे उदास होकर आयी और कंगन को जाने की बात बतायी।

वे बोले-‘तब तो ठीक हुआ। दूसरों के आम चुराए, उसकी परवाह ना की।तब कुछ दंड तो तुम्हें मिलना ही था और भगवान ने कृपा की जो परंतु तुम्हें दंड दे दिया। बराबर हो गया।उस रात में उन्हें रमाबाई भोजन परोसने लगी तो वे बोले-अरे वह 75रुपये वाले आमो की चटनी भी देना, उसका स्वाद तो चखे। उन दिनों रुपए का मूल्य आज से बहुत अधिक था,इसलिए सोने का एक कंगन 75रुपये में आ जाता था।रमाबाई चुप।बड़ी लज्जित।कंगन खोने का दुख भी था।तब रानाडे ने हंसते हुए कहा-‘दुख मत करो, ना पछताओ।यह तो चलता ही रहता है।संसार है।मुझे ही ले लो- राग वाली मेरी जो डिबिया थी,आज मिलती ही नहीं।इस प्रकार हम तुम दोनों ही कुछ ना कुछ आज खो बैठे।मेरी डिबिया 4 पैसे की होगी,पर खो जाने से मुझे बड़ी परेशानी हुई। पर गलती तो मेरी है छोटी वस्तु समझकर चिंता ना की।दंड मिले तो दुखी ना हो कर प्रसन्न होना चाहिए कि भगवान ने ठीक ही दंड दिया।आगे रमाबाई ने किसी की कोई वस्तु कभी इस प्रकार नहीं ली।

कहानी : चोरी का दंड

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here