कहानी : बचा रहे बचपन का रस

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बचा रहे बचपन का रस
बचा रहे बचपन का रस

कहानी : बचा रहे बचपन का रस

विन्नी कहां हो ! कितनी बार पुकारा, सुनती क्यों नहीं ? ऍन  सुबह से रसोई में व्यस्त गीता जोशी के गुस्से का ठिकाना ना था कई बार आवाज देने के बाद भी बेटी विन्नी ने कोई जवाब नहीं दिया।वह मोबाइल पर गेम खेलती रही चीड़ कर वह भून भुनाई,” छुट्टियां शुरु हो गई मम्मी गीता बोली,” बेटा ! छुट्टी केवल तुम्हारे स्कूल के कैलेंडर में होती है, मेरी तो कभी नहीं हुई, तुम लोगों के लिए तो मोबाइल चलाने के मौके की छुट्टी है छुट्टीया  तो हम मनाते थे।

 

सच ही तो कह रही है गीता बच्चे आजकल छुट्टियों के नाम पर विस्तृत  पढ़ाई के बोझ से दब गए हैं ।

ज्यादातर बच्चों के लिए आराम, मस्ती ,खेलकूद के मौके खराब हुए एक वक्त था जब 2 महीने लंबी गर्मी की छुट्टियों के दादी नानी के घर जाकर जबरदस्त मस्ती और धमाल करने का मौका मिलता था लेकिन अब अवकाश की जगह तरह-तरह के संकस  ने घेर रखा है।

तैराकी का तैराकी का मजा नहीं, ‘स्विमिंग’ के ‘लेसन’

10 साल का बंटी सोच रहा था, एक बार स्कूल में छुट्टी हो जाए फिर दादाजी के पास गांव जाऊंगा और वहां तालाब में जमकर तैराकी करेगा, लेकिन ऐन वक्त पर ट्रेन का टिकट आरक्षित नहीं हो सका और गांव जाने की योजना धरी की धरी रह गई हलाकि तैराकी तो अब भी करेगा ,लेकिन तालाब की जगह स्विमिंग पूल में पापा ने क्लब के पूल में  उसका पंजीकरण करा दिया है।बंटी वहां तैराकी  का मजा लेने की जगह स्विमिंग के  लेसन समझने वाला है।वो गोताखोर की देखरेख में बंधे गिने कदम ताल में नहीं है।

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