कहानी :- पढ़ने की ललक

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बेटियों को पढ़ाने से कोई समझौता ना करें
बेटियों को पढ़ाने से कोई समझौता ना करें

कहानी:- पढ़ने की ललक।

मेरा जन्म हरदोई के एक गांव में हुआ था।पिताजी गांव के प्रधान थे।शहर में उनकी साइकिल की एक बड़ी दुकान भी थी।मेरे गांव में हरदोई14 किलोमीटर दूर है।कभी-कभी मैं पिताजी के साथ दुकान चली जाती थी।दुकान में बैठे बैठे में आने जाने वाले बच्चों को स्कूल की ड्रेस में कंधे पर बस्ता लिए देखती तो मेरा मन भी पढ़ने के लिए मचल उठता।मैं मन ही मन सोचती कि कभी इन बच्चों की तरह मैं भी स्कूल जा पाऊंगी।
मेरे गांव में कोई स्कूल नहीं था।3-4 किलोमीटर दूसरे गांव में स्कूल था।मेरा चचेरा भाई पढ़ने जाता था।मुझे कोई जाने नहीं देता था।एक दिन चुपके से मैं भाई के साथ स्कूल चली गई।घर में सब लोग बहुत परेशान हुए।पूरे गांव में मुझे ढूंढा गया।मैं शाम को भाई के साथ स्कूल से लौटी।अम्मा ने पूछा कहां गई थी?मैंने कहा,भाई के साथ स्कूल गई थी।शाम को पिताजी को यह बात पता चली तो उन्होंने मेरी जमकर पिटाई की।दरअसल पिता जी बेटियो को पढ़ाने के पक्ष में करते नहीं थे।मैं 8-9 साल की थी, लेकिन घर वालों के ना चाहने के बावजूद मुझे पढ़ना अच्छा लगता था।एक दिन मैंने पिताजी से कहा कि आप तो प्रधान हो क्या एक स्कूल भी नहीं बनवा सकते।यह सुनकर उन्हें जैसे करंट लग गया।वह खाना खा रहे थे मेरी बात से झुंझलाकर बिना खाए ही उठ गए।कुछ महीने बाद मैंने देखा कि गांव में स्कूल बन रहा है।हम भाई बहन तो क्या अम्मा भी नहीं समझ पा रही थी कि स्कूल कैसे बनना शुरू हुआ।अम्मा ने पता लगाया तो सुनने को मिला के प्रधान होने के नाते स्कूल के लिए भागदौड़ पिताजी ने की थी।उन्ही के प्रयासों से स्कूल बन रहा था।एक दिन अपने पिताजी से पूछा कि आपके मन में स्कूल बनवाने का ख्याल कैसे आया, तो पिताजी ने भावुक होकर बताया कि पास के गांव में एक बहु विधवा हो गई।उसके बच्चे नहीं थे।घर वाले उसे डुबोकर मारने के इरादे से नदी में नहलाने ले गए।घर की औरतें उसे पानी में डुबोने लगी तो वे जोर से चिल्लाई उसकी आवाज सुन कर आ गई यह सुनकर औरतों ने उसे छोड़ दिया अपने गांव आ गई।यहां उसके रिश्तेदार रहते थे कुछ दिन बाद उसके घर वाले उसे ले गई।यह सब देख मुझे लगा कि मेरी तो 7 बेटियां हैं।अगर किसी बेटी के साथ ऐसा हादसा होगा तो बिना पढ़े लिखे हुए क्या कर पाएगी।अब मैं सभी बेटियों को पढ़ा होगा तभी उनकी शादी करूंगा।यह बात सुनकर माँ बहुत खुश हूंई।लगभग 6 माह में स्कूल बनकर तैयार हो गया।मैं 9 साल की थी,समझदार थी और अम्मा मुझे घर में पढ़ाती थी।मेरा नाम कक्षा तीन में लिखा गया।मैं अपने गांव के स्कूल से पांचवी तक की पढ़ाई पूरी की।उस विधवा की दुर्दशा से पिता जी की मन में आए परिवर्तन के कारण मेरा कक्षा 6 में हरदोई में एडमिशन कराया गया पिताजी ने हम बहनों को पढ़ाने के लिए हरदोई में किराए का मकान लिया था।समय के साथ जब हम बहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की।इस घटना के लगभग 65 साल हो रहे हैं।हम सभी बहने पढ़-लिखकर ससुराल वाली हो गई मैंने खुद करीब 30 साल तक एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी की।
मै कहानी के माध्यम से कहना चाहती हूं कि अभिभावकों को कुछ भी करना पड़े लेकिन बेटियों को पढ़ाने से कोई समझौता ना करें।बेटी की शिक्षा परिवार चलाने के साथ ही उसके जीवन का सबसे बड़ा अस्तर होती है।

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