प्रेरणा
मंच पर खड़े होकर भीड़ के समक्ष हड़बड़ाए बालक को प्रधान चार्य ने दिया हौसला तो बदल गई उस बालक की जिंदगी
उस समय मैं कक्षा 6 का छात्र था।गांव से लगभग 3 किलोमीटर दूरी पर मेरा विद्यालय था।एक बार विद्यालय में तुलसी जयंती समारोह का आयोजन हो रहा था।कक्षाओं में सूचना दी गई कि जो छात्र तुलसीदास जी के जीवन चरित्र के विषय में बोलना चाहे वह अपना नाम कक्षा अध्यापक के पास नोट करा दे।मैं पढ़ने में भी ठीक था।इसलिए कक्षा अध्यापक ने अपनी ओर से मेरा नाम नोट कर लिया।मुझे बहुत खुशी थी कि मुझे स्टेज पर बोलने का मौका मिलेगा।मैं खुद को गौरवांवित महसूस कर रहा था।अब तो मैं अपने आगे किसी अन्य छात्र को कुछ समझ नहीं रहा था।तुलसी जयंती के दिन कार्यक्रम अपने निर्धारित समय पर शुरू हुआ।किसी आयोजन में बोलने का यह मेरा पहला मौका था।
संचालक ने आवाज दी और मैं स्टेज पर बोलने के लिए पहुंचा।स्टेज पर पहुंचते ही मेरा मनोबल जवाब दे गया मैं घबरा गया।सामने भीड़ देखकर कुछ क्षणों तक तो मैं कुछ बोल ही नहीं पाया।किसी तरह मेने तुलसीदास जी पर बोलना शुरू किया तो मुंह से निकला,आदरणीय गुरुजन वृंद,प्रधानाचार्य महोदय!तुलसीदास जी की माता का नाम आत्माराम दुबे तथा पिता का नाम हुलसी था।इतना सुनते ही पंडाल में हंसी के फव्वारे फूट पड़े।भीड़ में से मजाकिया लहजे से लोग चिल्लाने लगे।छात्रों में कानाफूसी होने लगी।कुछ छात्र जोर से चिल्लाई की जब बोलना आता नहीं तो स्टेज पर क्यों आए।मैं विवेक शून्य हो गया।मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े।
यह देख कर सुन कर विद्यालय के प्रधानाचार्य नाराज हो कर उठे और पंडाल की ओर मुखातिक होकर उदघोषित किया,”साइलेंट प्लीज!शांति बनाएं!यह बालक कक्षा-6 का छात्र है।इसकी उम्र मात्र 10 वर्ष है।फिर भी यह बधाई का पात्र है।इसने इतने बड़े पंडाल में विशिष्टजनों की उपस्थिति के बीच बोलने का साहस किया है।यदि बालक घबराहट में कुछ उल्टा बोल गया तो इस में हंसने की बात नहीं है।कृपया इसका उपहास ना बनाएं।इस छात्र के साहस को मैं सलाम करता हूं।मेरा आत्मबल,आत्मविश्वास बढ़ गया प्रधानचार्य महोदय ने मेरी पीठ थपथपाई और प्यार से बोले,”बच्चे घबराओ मत!तुम तुलसी रचित कोई रचना सुना दो।उनकी संवेदनशीलता प्यार भरी मांग से मुझे धैर्य और साहस मिला।मैंने जोरदार आवाज में तुलसी रचित कुछ चोपाइया सुनाई।
पूरी पंडाल में सन्नाटा पसरा था।प्रधानाचार्य महोदय ने मेरी पीठ ठोक कर बधाई दी।कार्यक्रम का समापन हुआ और मुझे रामचरितमानस प्रधान की गई।धन्य है ऐसे प्रधानाचार्य महोदय जिनकी संवेदनात्मक प्रेरणा से मैंने फिर कभी पलट कर नहीं देखा।मैंने41वर्ष तक सरकारी विभाग में नौकरी की और अब अवकाश पा चुका हूं।उन्हीं प्रधानचार्य की प्रेरणा से विभाग में मेरी पहचान एक वक्ता के रूप में रही।
आज हमारे प्रधानाचार्य महोदय इस दुनिया में नहीं हैं,परंतु उनकी संवेदना,विनम्रता,उदारता और अपने विद्यार्थी जीवन में उन क्षणों को मैं हमेशा याद करता हूं।मैं शिक्षकों को कहना चाहता हूं कि वे बच्चों के प्रेरक बन कर उन्हें आगे बढ़ाएं तो वे जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।