राज्य की सीमा

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घमंडी का सिर नीचा कहानी
घमंडी का सिर नीचा कहानी

कहानी

राज्य की सीमा

एक बार महाराजा जनक ने एक राजाज्ञ का उल्लंघन करने पर एक व्यक्ति को अपने राज्य से निष्कासित होने का दंड दिया। व्यक्ति ने पूछा महाराज मुझे आप यह बता दें कि आपका राज्य कहां तक है,ताकि मैं उसके बाहर जा सकू। तब राजा जनक सोचने लगे कि वास्तव में उनके राज्य की सीमा कहां तक है। पहले तो उन्हें संपूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार- सा प्रतीत हुआ और फिर मिथिला नगरी पर। आत्मज्ञान के झोंके में वह अधिकार घटकर प्रजा तक और फिर उनके शरीर तक सीमित हो गया। अंत में उन्हें अपने शरीर पर भी अधिकार का भान नहीं हुआ। वह उस व्यक्ति से बोले आप जहां भी चाहे रहे, मेरा किसी भी वस्तु पर अधिकार नहीं है। व्यक्ति को आश्चर्य हुआ उसने पूछा महाराज इतने बड़े राज्य के अधिकारी होते हुए भी आप सभी वस्तुओं के प्रति कैसे निर्मम हो सकते हैं।अभी अभी तो आप संपूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार होने की सोच रहे थे ना? राजा जनक बोले, “संसार के सभी पदार्थ नशवर हैं, शास्त्रानुसार ना तो कोई अधिकारी सिद्ध होता है और न कोई अधिकार योग्य वस्तु ही है।अतः मैं किसे अपने अधिकार में समझू? जहां तक स्वयं को पृथ्वी का अधिकारी समझने की बात है। मैं स्वयं के लिए तो कुछ करता ही नहीं हूं जो कुछ करता हूं, वह देवता, पितर, भूत और अतिथि- सेवा के लिए ही करता हूं।इसलिए पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, प्रकाश और अपने मन पर अधिकार कैसे हुआ? यह सुनते ही उस व्यक्ति ने अपना चोला बदल लिया है। बोला,“महाराज, मैं धर्म हूं। आपकी परीक्षा लेने के लिए आपके राज्य में बात कर रहा था। मैं अच्छी तरह समझ गया कि आपका प्रत्येक कार्य धर्म- सम्मत है।

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