लघु कथा : बुजुर्ग कहां जा रहे हो

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लघु कथा : बुजुर्ग कहां जा रहे हो

 बुजुर्ग वैध  दयाराम हाथ में थैला पकड़े और नजर झुकाए पैदल जा रहे थे। रास्ते में एक पुलिस -नाके पर एक सिपाही ने अपमानजनक शब्द स्वर में कड़क कर पूछा, नजर बचाकर किधर चला जा रहा है?  क्या तुझे पता नहीं है कि कोरोना लॉकडाउन में खुले आम घूमना फिरना मना है?”

वैध जी ने नजर उठा कर देखा कि असभ्य ढंग से बोलने वाला सिपाही उम्र में उनके दोनों बेटों से भी छोटा जान पड़ता है। उसकी हिम्मत पर उसे गुस्सा तो आया फिर भी उन्होने  नम्रता भरे स्वर में कहा,” बेटा अपनी दवाओं की दुकान पर जा रहा हूं। करो ना लॉकडाउन में जिन दुकानों को कुछ समय के लिए खोलने की अनुमति मिली हुई है उनमें हमारा दवाखाना भी शामिल है।

“अच्छा ,अच्छा, ठीक है। ला, दिखा इस थैले में क्या है? क्या पता, दवाइओ  की आड़ में तू अवैध शराब बेचने का धंधा करते हो?”

 उस सिपाही के  ऐसे शब्द सुनकर नाके पर तैनात अन्य पुलिस कर्मचारियों के कान खड़े हो गए।

“लीजिए बेटा जी, देख लीजिए। थैले में रोटियां भरी हुई है।  वैध जी ने शालीनता के साथ थैले का मुंह खोल कर दिखा दिया।

“बाबा जी, इतनी सारी रोटियां साथ में क्यों लिए जा रहे हैं? एक हवलदार ने आदर पूर्वक पूछा।

वैध दयाराम जी ने उस हवलदार के बोलने का ढंग अच्छा लगा। उन्होंने उस को  संबोधित होते हुए कहा ,” बेटा जी इस महामारी के संकट में बहुत ही समाज सेवी संस्थाएं असहाय व बेसहारा लोगों को मुफ्त में भोजन उपलब्ध करा रही है, लेकिन बेजुबान और बेसहारा जानवरों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मेरे दवाखाने के निकट कई आवारा कुत्ते रहते हैं। मैं ये रोटियां उन्हीं के लिए लेकर जा रहा हूं।

फिर उन्होंने अभद्रता दिखाने वाले सिपाही की ओर देखते हुए कहा,”अगर आप में से किसी को कुछ रोटियां चाहिए तो वह भी ले सकता है। “

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