लघुकथा:नजर मत चुराओ

0
598
लघुकथा:नजर मत चुराओ
लघुकथा:नजर मत चुराओ

 एक टीवी चैनल का रिपोर्टर सतीश 10 किलो आटे की दो थैलियां, 5 किलो दाल, 2 किलो चीनी, 1 किलो चाय पत्ती, 2 लीटर वनस्पति घी आदि लेकर अपने घर लौटा और राशन का यह सामान रसोई घर में रखने लगा। उसे ऐसा करते देख उसकी पत्नी राधिका ने पूछा,” तुम यह सब समान कहां से लाए हो? तुम्हारे पास तो इतने रुपए भी नहीं थे।

 “आज एक समाज सेवी संस्था की ओर से राशन का सामान गरीबों में मुफ्त बांटा गया है। मैं उस संस्था के बुलावे  पर अपने चैनल के लिए कवरेज करने गया था। आते समय संस्था के प्रधान ने मेरे मना करने के बावजूद भी मुझे यह सब कुछ दे दिया। “सतीश  ने नजरें चुराते हुए कहा

“और तुम यह सामान ले आए?”

हां!”सतीश  उससे नजर नहीं मिला पा रहा था।

“नजर मत चुराओ ! मेरी तरफ देखो। इस त्रासदी ने अनेक लोगों को भूखे मरने पर मजबूर कर दिया है। तुम्हारी तनख्वाह में भी कटौती का कट लग चुका है। शुक्र है कि तुम्हारी नौकरी बची रह गई  है। हम जैसे- तैसे  निर्वाह कर रहे हैं। संकट के इस भीषण समय में हमें नैतिकता और ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। “

राधिका बोलती जा रही थी और सतीश  नजर झुकाए चुपचाप सुन रहा था राधिका ने आगे कहा,” सतीश जिन राशन के सामान से संकट के मारे कुछ और लोगों की मदद हो सकती है, वह तुम लेकर अपने घर कैसे चले आए? यह देश व समाज, नगर पालिका और मीडिया के में शेष बची हुई नैतिकता व ईमानदारी के बल पर ही तो आगे बढ़ रहा है। …

इससे पहले कि राधिका कुछ बोलती नजर उठाकर उसकी ओर देखते हुए बोला,” मुझे माफ कर दो गलती हो गई अभी यह सारा सामान वापस  लौटाकर आता हूं……  और वह दोबारा  राशन के उस सामान को अपने स्कूटर पर लादकर घर से रवाना हो गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here