साधू और चोर

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साधू और चोर
साधू और चोर

साधू और चोर

दो महात्मा थे। नाम थे उनके कर्ता राम और धवलराम।उनके कई शिष्य थे।सब एक गांव से कुटी बनाकर रहते थे। गांव का नाम ढेकड़ा था,जो बिहार के चंपारण जिले में था।महात्माओं का एक मंदिर था और उसके साथ लगी भूमि में खेती कर के शिष्यगण अनाज पैदा कर लेते थे, जिससे मंदिर की पूजा-आरती का खर्च चलता था।

एक बार जब फसल पक कर तैयार हुई, तो चोरों ने रात में उसे काटकर गट्ठर बनाये और उन्हें लेकर चंपत होना चाहा।किंतु ना जाने क्या हुआ कि उनको वहां से आगे मार्ग ही ना सूझा। ऐसा लगा कि उनकी आंखें बेकार हो गयी है।इसी स्थिति में भोर होने को हुई,पर अभी भी दो –एक तारे आसमान में थे, और कुटी में जगहर हो गयी।महात्मा कर्ता राम ने एकाएक संत धवल राम से कहा-‘देखो, उधर खेतों में अपने कई अतिथि आए हैं।कुटी में कल के जो भी फल,मिठाई, पुरिया आदि हो, उन्हें साथ ले जाओ और उनको सत्कार करो।‘

धवल राम कुटी से खाने की अनेक वस्तुएं लेकर खेतों में पहुंचे तो देखा कि यह तो पक्के चोरों का गिरोह है।रात भर में फसल काटकर गट्ठर भी बना लिये।फिर भी कर्ताराम के कथा अनुसार उन्हें खाने को सब कुछ दिया।इस पर चोर क्षमा मांगते हुए रो पड़े।पछताये कि हम पापी हैं कि मंदिर के खेत भी ना छोड़े हमारा क्या होगा मरने के बाद!ऐसा जीवन भी क्या! धवल राम ने कर्ता राम को बताया कि ‘वे तो चोर है, चोरी करके जाने वाले थे।‘कर्ता राम ने कहा-वे जो हो, हम तो साधू हैं।अपना काम क्यों छोड़े ? देखो,उस अनाज के गटठरो में से रात भर की मंजूरी उन्हें दे दो।उस में कमी ना रहे।बाकी गट्ठर रख लो मंदिर में,काम आएंगे।अनाज भी रामजी का और चोर भी राम जी के। हम-तुम अपना मन क्यों mमैला करें? क्यों उन्हें चोर कहे? उन्हें श्यामा ना किया तो हमारी साधुता क्यारही।,

धवल राम ने यही किया।चोरो से भी प्रेम बरता।मंजूरी दी। चोरों ने सौगंध खाई कि चाहे भूखे मर जाएं भविष्य में हम कभी चोरी नहीं करेंगे।, धवलराम ने कहा- सौगंध मत खाया करो। जो कहो, उस पर अटल रहना सीखो।हमारे सम्मान तुम भी मनुष्य हो।हम में, तुम में कोई भेद नहीं।तुम भी राम पर भरोसा करो।कमाकर खाओ।अच्छे बनो।जीवन का आनंद तुम्हें भी मिलेगा।यह जीवन थोड़े ही दिन का है,यह ना भूलो।चोरों ने चोरी छोड़ दी।

 

 

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