अब कंधे रहेंगे दमदार

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अब कंधे रहेंगे दमदार
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अब कंधे रहेंगे दमदार

क्रिकेट, टेनिस, बैडमिंटन आदि और एथलेटिक्स में कंधों की सक्रियता का खास महत्व है।कई कारणों से कंधे के जिस लोकेशन की समस्या उत्पन्न होती है, जिसका अब कारागार समाधान संभव है…..

कंदा बाल और सॉकेट का बना एक जोड़ (जवाइट) है।कंधे का खिसकना या डिस्लोकेशन वह में स्थिति है जिसमें बाह की हड्डी का ऊपरी भाग अर्थात बाल, साकेटके बाहर आ जाता है। ज्यादातर मामलों में यह जोड़ के आगे के भाग में होता है।कुछ गिने-चुने मामलों में डिस्लोकेशन   तब होता है जब बाल कंधे के पिछले हिस्से में चली जाती है।अत्यंत सीमित मामलों में डिस्लो लोकेशन कंधे के निचले हिस्से में होता है।

ऐसे पहचाने

मरीज अपने हाथ को हिलाने में दिक्कत महसूस करता है।

रोगी का कंधा गोलाकार दिखने की बजाय अचानक चकोर दिखने लगता है। यानी कंधे की बनावट में गड़बड़ हो जाती है।

मरीज के कंधे के सामने की त्वचा के नीचे एक गांठ या उभार दिखता है।

क्या है इसका इलाज

मरीज की स्थिति के अनुसार इस रोग का इलाज किया जाता है,जैसे एक्यूट डिस्लोकेशन का होना।इस स्थिति में जोड़ अपने नियत स्थान से हट जाता है।यह मेडिकल इमरजेंसी है और इस का तत्काल इलाज जरूरी है।मेडिकल परीक्षण के अलावा जान से भी की जाती है।जैसे एक्स रे  आदि।मरीज को ट्रैक्शन पर रखा जाता है नींद लाने वाली दवा देकर कंधे के डिस्लोकेशन को खींचकर अपनी जगह लाया जाता है।3 सप्ताह के लिए शोल्डर इमोबिलाइज्र या आर्म रिलंग में  कंधे को सथिर रखा जाता है।

बार बार डिस्लोकेशन होना

अनेक लोगों को समस्या ज्यादा होती है।कम उम्र यानी लगभग 20 साल में पहला डिस्लोकेशन होना।ऐसे मामलों के दोबारा होने का लगभग 80% है।

बाल या साकेट की तरफ हड्डी संबंधी विकार होना।

ऐसे लोग जिन्हें बार-बार हाथों को सिर के ऊपर ले जाने की जरूरत होती है।जैसे किसी वस्तु को फेकना, सिर के ऊपर किसी चीज को पकड़ना।जब डिस्लोकेशन एक से अधिक बार होता है, तब इसे रिकरेट डिस्लोकेशन कहा जाता है।

सर्जिकल समाधान

कंधे के बार- बार  होने वाले डिस्लोकेशन के सभी मामलों के लिए किसी न किसी प्रकार की सर्जरी की जरूरत पड़ती है।कंधे को दरुस्त करने के लिए की जाने वाली सर्जरी मरीज को बेहोश करके की जाती है, लेकिन कंधे के फटे हुए या विकारग्रस्त लिगामेंट को ठीक करने के लिए आर्थोस्कोपी की मदद से 5 मिलीलीटर छोटे-छोटे चीरे लगाकर कीहोल सर्जरी की जाती है और सर्जरी के लिगामेंट को ठीक किया जाता है।यह सर्जिकल प्रक्रियाए एक नियत्रित कैमरे की मदद से की जाती है।

एंकर टांके की मदद से लिगामेंट को जोड़ा जाता।हाल में ऐसे एंकर टंकी का उपयोग किया जाने लगा है जो एक्स-रे से भी नहीं दिखता।अब गांठ रहित टांके भी भी उपलब्ध है, जिनका उपयोग करना आसान है और इससे सर्जरी भी कम समय में ही हो जाती है।मरीजों को सर्जरी के उपरांत फिजियोथेरेपी करानी होती है और सर्जरी के 3 माह बाद मरीज खेलकूद से संबंधित गतिविधियों का परीक्षण शुरू कर सकता है।

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