रोगों और दुखों से मुक्ति देता है ध्यान
ध्यान करने वाला सदा निरोग रहता है।उसे कभी भी कोई रोग नहीं होता।ध्यान द्वारा अनेक लाभ होते हैं।शरीर में भारीपन या आलस्य नहीं रहता,शरीर का वर्ण उज्जवल हो जाता है।ध्यान द्वारा हम सब प्रकार के दुखों से भी मुक्ति पा सकते हैं। साधारणतया जीवन में एक के बाद एक समस्याएं आती रहती हैं।उनसे बचने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय भी करते हैं।कई लोग दुखो से बचने के लिए शराब और सिगरेट पर अन्य खतरनाक किसम की नशो का प्रयोग करते हैं इससे उनका दुख कम तो नहीं होता,अपितु और अधिक बढ़ जाता है।उनका शरीर भी नशे की अग्री में जलकर भस्म हो जाता है।
जो दुख आने पर नशा नहीं करते वे चिंताएं इतनी रखते हैं की चिंता से उनकी चिता बन जाती है।ध्यान द्वारा हम अनेक प्रकार के रोगों से ही नहीं,अनेक प्रकार के दुखों से भी छुटकारा पा सकते हैं।
ध्यान द्वारा हम लाभ चाहते हैं तो हमें यह भी जानना आवश्यक है कि हम ध्यान कैसे करें? ध्यान की सही प्रक्रिया क्या है? ध्यान के लिए किन बातों का ध्यान रखा जाए।ध्यान करने के लिए किस प्रकार बैठा जाए इस संबंध में योगी बताते हैं कि ध्यान करने बैठे तो सिर्फ गला और छाती उठाए रखकर सीधी रखें, इधर उधर ना झुकने दे, शरीर सीधा और स्थिर रखें
यदि हम सिर गला और छाती सीधी नहीं रखेंगे तो निंद्रा और आलस्य के कारण ध्यान नहीं सध पाएगा।इसके और भी कारण है।मेरुदंड सीधा रखना आवश्यक है। यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर को अकड़या ना जाए,बल्कि उसे सरल और सहज ढंग से सीधा रखा जाए।जब हम ध्यान में एकाग्रता का प्रयास करते हैं, तो इंद्रियां जैसे बरबस ही विषयों की तरफ भागने लगती है।ऐसा करने का उनका पुराना अभ्यास पड़ा हुआ है।अतः इंद्रियों को बाहरी विषय से हटाकर परमात्मा अथवा उसके स्वरूप दिव्य ज्योति में ध्यान लगाना चाहिए।जहां ध्यान किया जाए वहां आसन की भूमि समतल होनी चाहिए।यहां कूड़ा-करकट नहीं होना चाहिए।
ध्यान का अभ्यास करने वाले की प्रकृति यदि ठीक है,तो शुरु से ही उसे कभी कोहरा दिखाई देता है,कभी धुँआ दिखाई देता है,कभी सूर्य के समान प्रकाश दिखाई देता है।कभी आग जैसा तेज दिखाई देता है,कभी जुगनू की टिमटिमाहट-सी दिखाई देती है।ऐसे दृश्य यह अभ्यास देते हैं कि ध्यान-साधना प्रगति पथ पर है और ध्यान में उन्ती हो रही है।
ध्यान की प्रक्रिया निरंतर चलते रहने से एक स्थिति यह आती है कि ध्यानी को पृथ्वी,जल, वायु, आकाश पर अधिकार प्राप्त हो जाता है।इन महा भूतों से संबंधित पांचो योग्य विषयक सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।जब शरीर ध्यानस्थ होता है,तो परमात्मा की कृपा बरसती है।सभी प्रकार के दुखों का अंत हो जाता है।रोग नाश के लिए ध्यान एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय है।ध्यान करने वाला आत्मतत्व के द्वारा ब्रह्मतत्व को भली-भांति प्रत्यक्ष कर लेता है और फिर वह सब प्रकार के बंधनों से सदा के लिए छूट जाता है।