दवा है सकारात्मक सोच

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दवा है सकारात्मक सोच
दवा है सकारात्मक सोच

दवा है सकारात्मक सोच

हालात काबू में नहीं है, क्योंकि डिप्रेशन की गिरफ्त में उम्रदराज व्यक्ति ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी आ चुका है।क्या आपको पता है कि डिप्रेशन आत्महत्या के प्रमुख कारणों में एक है।विश्व स्वास्थ्य संगठन डिप्रेशन के कारण दुनिया भर में आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़ों को लेकर चिंतित है।इस रोग पर कैसे लगाएं लगाम।कुछ विशेषज्ञों से बात कर ले जाने का प्रयास किया है….

क्या है मर्ज: डिप्रेशन को समझने के लिए इस रोग के बुनियादी स्वरुप को समझना जरूरी है।जैसे कुछ

समय के लिए होने वाली तनावपूर्ण स्थिति को हम डिप्रेशन नहीं कह सकते। विपरीत परिस्थितियों में सभी लोगों को दुख या तनाव महसूस होता है, लेकिन डिप्रेशन ऐसा मनोरोग है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति लगातार काफी समय तक अत्यधिक उदासी और नकारात्मक विचारों से घिरा रहता है।

ऐसे करें बचाव:  इस सत्य को समझें कि जीवन में उतार चढ़ाव सफलताओं और विफलताओं का आना- जाना लगा रहता है।यह विश्वास रखें कि मौजूदा प्रतिकूल दौर भी गुजर  जाएगा।

सकारात्मक विचारों को प्रश्रय दे।

कोई रचनात्मक हॉबी  विकसित करें।

जरूरत पड़ने पर अपनों के समक्ष अपने मन में दबी बात को कहें।ऐसा करने से आपका मन हल्का और शांत हो जाता है।

अगर डिप्रेशन की स्थिति से उबर नहीं पा रहे हैं, तो अपने परिजन या दोस्त के साथ मनोरोग विशेषज्ञ से परामर्श कर ले।

इलाज से मिलेगी राहत

अगर समस्या है, तो उसका समाधान भी है।डिप्रेशन लाइलाज रोग नहीं है।डिप्रेशन से ग्रस्त अनेक व्यक्तियों को डिप्रेशनरोधक दवाओं से लाभ मिल जाता है।डिप्रेशन के इलाज में साइको-एजुकेशन का अपना विशेष महत्व है।इसके अंतर्गत रोगी और उसके परिजनों को रोके कारणों से उसके इलाज के बारे में समझाया जाता है।इसके बाद रोगी के परिजनों के सहयोग की जरूरत पड़ती है,लेकिन इस रोग के इलाज मेंकांग्नेक्टिव बिहेवियर थेरेपी सार्वधिक कारगर साबित होती है।इस थेरेपी की मान्यता है कि हमारे विचार भावनाएं और व्यवहार आपस में संबंधित है।इस थेरेपी के अंतर्गत विभिन्न मनोचिकित्सा विधियो के जरिए और काउंसलिंग के माध्यम से रोगी के दिमाग को सकारात्मक विचारों की ओर मुड़ा जाता है।

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