वैराग क्या है जानिए
स्वार्थ का शालीन नाम ‘मोह’ है।हम सभी परस्पर स्वार्थ से जुड़ते हैं।इसी कारण उनके प्रति मोह रहता है। भोगो के परिप्रेक्ष्य में भी मोह रहता है,किंतु तब उसे आसकित कहां जाता है।अपेक्षा रखना स्वार्थ है। स्वार्थ ममत्व को जन्म देता है।ममत्व ही मोह है।लोक में व्यक्ति का तन,परिजन,मित्र,सबंधी और धन आदि से सीधा जुड़ाव होता है।सभी से कुछ ना कुछ स्वार्थ सिद्ध होता है।इसलिए इनके प्रति स्वभाविक मोह होता है।लौकिक-संबंध अथवा वस्तु हमारे लिए जितना उपयोगी होते है,उतने ही वे कम्य है।उनके प्रति उतनी ही आसकित दृढ़ होती है।हमें जिन लोगों के प्रति जितना मोह या राग-भाव होता है, उनके खोने का भय भी उतना ही प्रबल होता है।अब यदि इस मोह से छुटकारा पा लिया जाए तो संसारिक दुखों से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।मोह से छूटने का एकमात्र उपाय है ‘वैराग्य’ वह शक्ति है जो मनुष्य को अभय प्रदान करती है।
वैराग्य प्रापति की प्रक्रिया मान के रागात्मक होने वाले कारणों के सर्वथा विपरीत है।लौकिक संबंधों से अपेक्षाओं की पूर्णतया त्याग और उनके प्रति ममत्व त्याग पर निर्विकार होना वैराग्य प्राप्ति का उपाय है, किंतु यह इतना सरल नहीं है,क्योंकि इसके लिए ‘समत्व बुद्धि’ का अनुभव करने के लिए दृढ़तापूर्वक अभ्यास करना पड़ेगा।समत्व-बुद्धि निर्मल-मन का विषय है।लौकिक अपेक्षा, कामना, आसकित और मोह आदि विकार सकीर्ण और अशुद्ध-मन के कार्य-व्यापार है।इसके विपरीत अलौकिक और सर्वव्यापक सत्ता को एकमात्र स्वीकार करना, उसी के साक्षात्कार की अपेक्षा रखना अपेछा रखना स्थिर-प्रज्ञया समस्व-बुद्धि प्राप्त करने के प्रारभिक चरण हैं।अलौकिक सत्ता को सर्वेपरी मानने से लौकिक-प्रपुंच स्वत:शांत होने लगते हैं।उस परम सत्ता को सर्वव्यापी जान लेने के बाद जीव-जीव में ईश्वर का वास होने से सभी में प्रेम होता है और सब के प्रति समत्व-बुद्धि विकसित होती है।यह मन की रागात्मक-मनोभूमि से ऊपर उठकर विरागी-स्थिति में प्रवेश करने की प्रक्रिया है।तब ना किसी से शत्रुता होती है और ना मित्रता।यदि कुछ होता है तो रागरहित मन में एक अलौकिक और स्थाई आनंद वास करता है।