संयुक्त परिवार
मैं सहायक अध्यापक के पद पर अपने गृह जनपद में बांद्रा में ही कार्यरत हूं। मेरा बचपन मेरे गांव में ही बीता।जिस वजह से मुझे अपने गांव से अधिक लगाव है। मैं अपने संयुक्त परिवार के बीच पला-बड़ा हूं, जहां मेरे बाबा और उनके 6 भाई अपने परिवार के साथ रहते थे।फिलहाल तो घर में अधिकतर सदस्य अलग-अलग शहरों में नौकरी कर रहे हैं और अपने परिवार के साथ रह रहे रहे हैं, लेकिन जब भी परिवार में कोई छोटा बड़ा कार्यक्रम होता तो सभी लोग शामिल जरूर होते हैं।
बात पिछले महीने की है, जब हम बहन की शादी में एकत्र हुए। जिस दिन बहन की शादी हो रही थी, वह मेरे बाबा के भाई की पोती है, जो लखनऊ में रहती है। मैं तो गांव के हालात से पूरी तरह वाकिफ था, लेकिन अप्रैल महीने की गर्मी और कम संस्थानों के बीच गांव में दिक्कत उन लोगों को होनी थी जो शहर से आ रहे थे। दादी के ससुरालजनों का मन था कि शादी गांव में ही हो इसलिए गांव में ही शादी की तैयारियां की गई। जैसे ही तारीख नजदीक आ गई वैसे वैसे ही कोरोना आक्रमण की चिंता बढ़ रही थी। कम सुविधाओं और बड़े परिवार के साथ ही बाहरी लोगों के संपर्क में ना आना एक बड़ी चुनौती थी। अप्रैल को तिलक लेकर हम लड़के वालों के यहां गए और डरे सहमे मास्क लगाए। हम लोगों ने जल्दी ही औपचारिकताए पूरी की और घर वापस हो लिए।
क्योंकि शादी 30 अप्रैल को होनी थी और 29 अप्रैल को पंचायत चुनाव भी थे, जिसमें गांव में ही रहने वाले हमारे चाचा प्रधान पद के प्रत्याशी थे इसलिए शादी तक सभी को स्वस्थ रखना टेढ़ी खीर थी। हमारे झांसी वाले ताऊ जी फार्मासिस्ट थे,सो , उन्होंने सबके स्वास्थ्य का जिम्मा उठाया। वह सुबह-सुबह काढ़ा बनाते और परिवार के प्रत्येक सदस्य को नियमित तौर पर पिलाते। किसी भी सदस्यों में यदि कोई लक्षण दिखेते या कोई समस्या होती तो वह खुद को सबसे अलग कर लेता और ताऊ जी बताए अनुसार दवाइयां सावधानिया अपनाना शुरू कर देता था।वह तभी सब के संपर्क में आता था जब बेहतर महसूस कर रहा है हो
इस प्रकार हम 50-60 लोगों ने शादी तक सवं को स्वस्थ रखा। शादी के लिए घर के सभी सदस्य को जिम्मेदारियां बांटी गई थी। कोई बारात के स्वागत के लिए फूल माला लिए गया था तो कोई सभी मेहमानों के लिए सैनिटाइज करवा रहा था। किसी को कार पार्किंग की व्यवस्था देखने का जिम्मा मिला तो किसी को शारीरिक दूरी बनाए रखने का दायित्व और इस तरह की शादी समारोह सकुशल संपन्न हो गया। शादी के बाद भी सभी परिवार वाले 1 सप्ताह से ज्यादा समय तक गांव में ही रुके। इस समय सभी ने ना सिर्फ इन दिनों का आनंद उठाया बल्कि एक दूसरे के और करीब आ गए। जब सभी के अपने अपने घर वापस जाने का वक्त हुआ तो हर कोई थोड़ा मायूस भी हो रहा था।जाने का मन तो किसी का नहीं लगा था, लेकिन नौकरी की मजबूरी से सबको जाना पड़ा। अपने अपने घर पहुंचने के बाद हम सब व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हैं। इस शादी के बाद एक बात का पोजिटिव संयुक्त परिवार की नींव जो हमारे बाबाजी ने डाली थी, वह आज भी मौजूद है। कोरोना महामारी जैसे संकट के समय में सब कुछ सहजता से होने के पीछे पूरे परिवार का योगदान था तीसरी पीढ़ी और बड़ा परिवार होने के लिए जो एकता और समर्पण का भाव हमारे परिवार में है। वह समाज के लिए एक मिसाल है।
आज तीसरी पीढ़ी चलने के बाद भी हमारे परिवार में सके चचेरे जैसे शब्द प्रयोग नहीं किए जाते और इस बात पर हमें गर्व है। लोग अक्सर यह सोचते है की जिस तरह हमारे बाबा और पापा की पीढ़ी में अपने भाइयों के बीच प्यार था, क्या वह हमारी पीढ़ी में रह पाएगा। तो अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी में सबसे बड़ा सदस्य होने के नाते मेरा यह अनुभव इसी सवाल का एक बहुत ही आदर्श उत्तर है।
मैं बस यही कहना चाहता हूं कि एक पेड़ तभी ऊंचा बढ़ सकता है जब उसकी जड़े जमीन में गहरी और मजबूत जमी हो। यह बात हमारे पूर्वज समझाते थे तभी उन्होंने संयुक्त परिवार को इतनी ज्यादा महत्वता दी थी।आज भी हमें परिवार रूपी जड़ से जुड़कर रहना होगा, तभी हम सफलता और आर्दश इंसानियत की ऊंचाई पर पहुंच सकेंगे।