खुशी का मंत्र
बात उन दिनों की है जब मैं घर पर रहकर बच्चों और गृहस्थी का निर्वहन कर रही थी। आजकल के व्यस्त जीवन में पड़ोसियों से मेल मुलाकात काम ही हो पाती है।सो, मैं भी अपने घर में ही रहती और किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करती थी।कहीं न कहीं मेरे जीवन में थोड़ी नीरसता आ चुकी थी।
एक दिन की बात है, बच्चों के स्कूल से आने का समय नहीं हुआ था पर दरवाजे की घंटी बज उठी।मैंने कुछ सोचते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि सामने शांति आंटी खड़ी थी।शांति आंटी सेकंड फ्लोर में रहने वाली नीरू के यहां खाना बनाती थी।नीरू पास के स्कूल में अध्यापिका थी। वह 2:00 बजे के बाद ही घर पहुंचती थी।शायद आज उसे देर हो गई थी, इसलिए थक-हारकर शांति आंटी ने मेरा दरवाजा खटखटाया था।वह मुझसे बोली कि बिटिया सीढ़ियों पर बैठे-बैठे पीठ अकड़ गई है।ठंड भी बहुत है।नीरू बिटिया आए तो बता देना मैं पार्क में हूं।
थोड़ी देर बाद मेरे पास नीरू का फोन आया।उसने बताया कि आज वह 4:00 बजे से पहले घर नहीं पहुंच पाएगी।शांति आंटी आए तो उन्हें वापस जाने को कह दीजिए।मैं यह बात शांति औंटी को बताने गई तो देखा वो पार्क में अपने थैले पर सिर टिकाए धुप में सो रही थी।मैंने उन्हें जगाया और नीरू का संदेश दिया।मुझे लगा कि शायद नाराज होगी, क्योंकि 50 साल की उम्र में वो काफी दूर से पैदल आती थी।परंतु वह मुस्कुराते हुए उठी और अपनी शाल लपेटकर मुझे धन्यवाद देने लगी।
मैं उनको पिछले 4 साल से जानती थी।कभी बीमार होने पर भले ही वो ना आए, इसके अलावा वे नीरू के यहाँ दोनों वक्त का खाना बनाने आती थी।मौका मिला तो मैंने उनसे पूछ लिया कि आप इस उम्र में काम क्यों करती है?घर पर कोई ध्यान रखने वाला नहीं है क्या? इस पर वो बोली मेरा पूरा भरा पूरा परिवार है।घर में बहू, बेटा, नाती-पोते सब है।मेरे पति तो मेरा बहुत ख्याल रखते हैं।मैंने पूछा कि अंकल क्या करते हैं? तो वह बोली कि वह ई-रिक्शा चलाते हैं और बेटा कार ड्राइवर है।बेटी की शादी कर दी है और घर जाने के लिए बहु है।भगवान की कृपा से सब बढ़िया चल रहा है।बुढ़ापा आराम से कट रहा है।
इस पर मैंने जिज्ञासावश सवाल किया तो फिर आप घर में आराम नहीं करती?मेरी बात पर वे हंस पड़ी और मुझे आप बीती सुनाने लगी।वे बताने लगी कि कुछ साल पहले तुम्हारे अंकल पेंडल वाला रिक्शा चलाते थे।एक एक्सीडेंट में उनका एक पैर खराब हो गया।कोई मदद करने नहीं आया।मैंने मजबूरी में झाड़ू बर्तन करना और खाना बनाने का काम किया।उस समय बेटा ड्राइविंग सीख रहा था।कुछ समय बाद एक कंपनी में नौकरी मिल गई थी। तुम्हारे अंकल की जिद थी कि वो फिर से रिक्शा चलाएंगे।हमने किसी तरह पैसे का इंतजाम कर उन्हें ई-रिक्शा खरीद दिया जिसे वे चलाते हैं।दोनों बच्चों का ब्याह भी कर दिया।जो है, खुशी से जीने के लिए बहुत है।फिर वे कहने लगी की बेटा मुझे खाना पकाने का बहुत शौक है।वह जो तुम लोग कहते हो ‘हॉबी” बस वही है, जो इस उम्र में मुझे व्यक्त किए हैं।खाना बनाने से मेरी हॉबी पूरी हो जाती है।हॉबी पूरी होने से खुश रहती हू और इसी बहाने व्यस्त रहती हू तो हाथ-पैर भी ठीक से काम करते हैं।हां, आमदनी तो हो ही जाती है।
उस दिन उसकी बातों ने मुझे बहुत प्रेरित किया।उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि एक ये और एक मै वह इतनी दूर से सिर्फ पैसे कमाने नहीं अपना शौक पूरा करने आती है।लिखने का शौक होने के बावजूद में कलम इसलिए नहीं उठा रही कि लोग क्या कहेंगे जबकि शादी से पहले लिखती थी।मैं घर पहुंची और उसी शाम संकल्प लिया कि हमें अपनों के साथ समझौता नहीं करूंगी।रात को खाना खाकर बच्चे सो गए।मैंने बिना वक्त गवाए लिखना शुरु कर दिया धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ा।आज मुझे एक लेखिका के रूप में खूब सामान मिल रहा है।मैं कहना चाहती हूं कि अगर आपके अंदर कोई हुनर है,तो देर मत करें।यह आपको खुशी के साथ पहचान भी देगा।वैसे भी अच्छे काम की शुरुआत का कोई मुहूर्त या उम्र नहीं होती।