कहानी : सच्चा तपस्वी
राजगुरु पुराने समय की बात है,एक बहुत गरीब ब्राह्मण था।किंतु बड़ा ही कृष्ण भगत था।उसने सुना कि राजा अपने राज्य के तीर्थ स्थान मथुरा में श्री कृष्ण का एक सुंदर मंदिर बनवा रहा है और घोषणा कराई है कि जो व्यक्ति मंदिर बनवाने के काम में शारीरिक श्रम राजगिरी या कारीगरी का काम करेगा,उसे अच्छा प्रारिश्रमिक मिलेगा।राज्य भर से बहुत लोग मजदूरी करने मथुरा पहुंचे और काम में लग गए। वह निर्धन ब्राह्मण भी मंदिर बनाने के कारण में ईट-पत्थर-चूना-गारा ढोने,नीव खोदने, पानी लाने आदि का काम बड़ी प्रसन्नता से करता।शाम हुई तो सबको काम करने का पैसा बटा।किंतु जब ब्राह्मण की बारी आई तो उसने पैसा लेने से इंकार कर दिया।कोषाध्यक्ष ने पूछा-‘फिर तुम यहां क्यों आए घर बार छोड़कर?’ उसने कहा- भगवान कृष्ण का मंदिर बने और मैं घर बैठा रहूं, यह कैसे हो सकता है?’
तब प्रशन हुआ-‘लेकिन प्रारिश्रमिक लेने में क्या हानि है? क्या घर में बहुत धन है?’ सुनकर वह हंसा और बोला-‘ सो तो, मैं बहुत निर्धन हूं। किसी सद्ग्रह्थ के घर से जो भिक्षा मिलेगी,उसी से संतोष करूंगा।‘ लोग बड़े चकित।वह काम पूरे परिश्रम से करता रहा। देह हिल गयी।ठीक खाना ना मिला।कुछ दुर्बल दिखने लगा।पर कोई शिकायत ना की।धीरे-धीरे यह चर्चा राजा तक पहुंची। अगले दिन राजा आया तो उस निर्धन ब्राह्मण को उसके पास लाया गया।राजा ने देखा-उसके हाथ- पैर मिटटी- चूने में सने हैं।तन पर केवल एक कपड़ा है और मुख पीला हो रहा है,जैसे कुछ रुगन हो।
राजा ने पूछा-‘तुम अपने काम का प्रारिश्रमिक क्यों नहीं लेते ?’उसने कहा-मैं मजदूरी नहीं करता।‘ राजा ने कहा-फिर यहां क्यों आए?’ वह बोला-मैं पुण्य कार्य में हाथ बटाने आया हूं,पैसे के लिए नहीं। ब्राह्मण हूं। कहीं भी भिक्षा मांग लेता हूं।राजा उसके पैरों में झुक गया। और बोला-‘ महाराज!आप जैसे सच्चे तपस्वी के दर्शन कृष्ण भगवान ने करा दिए।मेरा मंदिर बनवाने का संकल्प सफल हुआ।आप मेरे साथ पधारें मुझे पुण्य का प्रसाद प्राप्त होने दें।,वह राजा के यहां गया।राजा ने उसकी सेवा की और उसे अपना राजगुरु का पद देकर कहा-‘अब यह मंदिर आपकी ही इच्छा अनुसार बनेगा।‘पर राजपुरोहित होकर भी वह प्रतिदिन घंटे उसी प्रकार जाकर ईट-गारा ढोता रहा,जब तक मंदिर बन नहीं गया।