एक बार जब भगवान बुद्ध जेतवन हार में जा रहे थे, तो भिक्षुक चक्षु पाल भगवान से मिलने के लिए आए थे। उनके आगमन के साथ उनकी दिनचर्या व्यवहार और गुणों की चर्चा भी हुई। भिक्षु चक्षुपाल अंधे थे। एक दिन बिहार के कुछ भिक्षुओ ने मरे हुए कीड़ों को चक्षु पाल की कुटी के बाहर पाया और उन्होंने चक्षुपाल की निंदा करनी शुरू कर दी कि इन्होंने इन जीवित प्राणियों की हत्या की
भगवान बुध में निंदा कर रहे उन भिक्षिको को बुलाया और पूछा कि तुमने भिक्षु को कीड़े मारते हुए देखा है। उन्होने उतर दिया की नहीं। इस पर भगवान बुध्द ने उनसे कहा कि जैसे तुमने इन कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा वैसे ही शिशुपाल ने भी उन्हें मरते हुए नहीं देखा और उन्होंने कीड़ों को जानबूझकर नहीं मारा है इसलिए उनकी भत्सर्ना करना उचित नहीं है।भिक्षुओ ने इसके बाद पूछा कि चाक्षुपाल अंधे क्यों है ? उन्होने इस जन्म में अथवा पिछले जन्म में क्या पाप किये। भगवान बुद्ध ने चक्षुपाल के बारे में कहा कि वे पूर्व जन्म में चिकित्स्क थे। एक अंधी स्त्री ने उनसे वादा किया था कि यदि वे उसकी आंखें ठीक कर देंगे तो वह और उसका परिवार उनके दास बन जाएंगे। स्त्री की आंखें ठीक हो गई। पर उसने दासी बनने के भय से यह मानने से इंकार कर दिया। उसको पता था कि उस स्त्री की आंखें ठीक हो गई है। वह झूठ बोल रही है। उसे सबक सिखाने के लिए या बदला लेने के लिए चक्षु पाल ने दूसरी दवा दी, उस दवा से महिला फिर अंधी हो गई वह कितना ही रोई -पीटी, लेकिन जब चक्षु पाल जरा भी नहीं पसीजा। इस पाप कर्म के फल स्वरुप अगले जन्म में चिकित्सक को अंधा बनना पड़ा।