लोक और तंत्र का सम्मान जरूरी

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जिन्हें इस देश की सबसे बड़ी कचहरी, सबसे बड़ी पंचायत कहा जा सकता है, हमारे लोकतंत्र की सिरमौर वे संस्थाए, इस देश की संसद और विधानसभाए किस हाल में है? निशिचत ही यह भवनों और व्यवस्थाओ की बात नही है| यह सब तो चकाचक है, बात हमारे जनप्रतिनिधियो की देश और समाज से जुडी प्रतिबद्धताओ की है| उन बातो की जिनका दम भरते हुए वे सदन में दाखिल हुए थे| आज इन सदनों के भीतर के क्रियाकलाप कैसा संकेत दे रहे है?हाल की दो घटनाओ से उठे संकेतो पर नजर दौडाए- 1 कर्नाटक द्वारा अलग ध्वज की संभावना टटोली जा रही है|2 लोकसभा में समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने हिन्दू देवी-देवताओ पर आपत्तिजनक टिप्पणी की| ये सब घटनाएं अलग-अलग जरुर है किन्तु केवल ऊपरी तौर पर| दोनों घटनाओ में गूंजती एक साझा है| नेता कुछ भूल रहे हैं| वे यह भूल रहे है कि भारतीय लोकतंत्र में प्रांतीय पहचान राष्ट्र से बड़ी नही है| सदन में किसी का कद इतना बड़ा नही है कि वह पुरे देश की आस्था को ठेस पहुंचाए|यह भूल पहली बार नही है, यह बार-बार राजनैतिक सुविधानुसार प्रकट होने वाला भुलक्कडपन है| यह राजनीति में जड़ जमाता कुछ लोगों का अडियलपन है | यह बता रहा है कि कुछ लोगो ने जनभावनाओ को तुच्छ मानने और जनतंत्र को बौना साबित करने की जिद पकड़ ली है | एक-एक कर बात करते है | पहले बात कर्नाटक की | राज्य में अलग ध्वज के लिए काग्रेस सरकार द्वारा समिति गठन का पैंतरा ऐसा है जिसकी भरसक निंदा की जनि चाहिये| वसे प्रस्ताव दिल्ही से ख़ारिज हो गया परन्तु यह  जानना जरूरी है की यह कोशिश पहली बार नही थी| 2012 में भी यह मुद्दा राज्य की विधानसभा में उछला था | काग्र्स से पूछना चाहिये की अलग ध्वज में उसकी रूचि का कारन क्या है | क्या यह प्रांतीय अलगाव की भावना और राष्ट्रध्वज की सर्वोच्चताको ठेस पहुचाने वाला कदम नही है ?काग्रेस पार्टी और दिल्ही में बैठे कुछ कतिथ प्रगतिशील लोग इसके लिए जमू-कश्मीर का उधारण दे रहे है| ऐसे तत्वों को बताया जाना चाहिये की किसी भी स्थिति में अपवाद कभी भी उधारन नही हो सकता| क्या ये लोग कर्नाटक के लिए जमू-कश्मीर से कोई साम्य दिशा या प्रेरणा पते है या एक सहज राह पर चलते सूबे को समस्याग्रस्त छेत्र की राह पर धकेलने के पीछे कोई धृshtaष्टतापूर्वक रचा गया षड्यंत्र काम कर रहा है |अगला प्रकरण लोकसभा का है हरदोई के सासंद महोदय की टिप्णी और फिर माफ़ी माफ़ी का तो कहना ही क्या | नरेश अग्रवाल की इतनी लानत-मलानत पहले कभई होई हो,याद नही | यह हैरान करनी वाली बात है की इस देश कि करोड़ो लोगो की आस्था से जुड़े पवन नामो को दाग लगते हुए सपा सासंद को तनिक हिचक और घबराहट नही होई |क्या यह विधानसभा चुनाव के दोरान पुरे परदेश में समाजवादी पार्टी की जबरदस्त पराजय के बावजूद अपना छोटा सा गढ़ बचे रह जाने का दंभ है | जो भी हो बयान के बाद उनके घर के सामने फूंका हुआ पुतला बता रहा है कि छेत्र की जनता जिसे मसीहा बना सकती है, ठेस लगने पर उस मसीहा को को उसकी जगह भी दिखा सकती है |वसे इसे सहयोग ही मानना चाहिये कि जिस हरदोई का नाम प्रभु से घात करने वाले हरी द्रोही के नाम पर पड़ा,आज वही के सासंद पर हरी प्रतिष्ठा पर आघात करने का धब्बा लगा है | बहरहाल, सवाल हजार है कि कर्नाटक हो या दिल्ली, सुभीते की राजनीति करने वाले उपरोक्त सभी माननीय आज जनता के कटघरे में है| वृदावनलाल वर्मा

 

 

 

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