भारत का ज्ञान और टिम्बकटू का सोना

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भारत का ज्ञान और टिम्बकटू का सोना


इस पृथ्वी पर सोने की सबसे बड़ी लूट 1799 में हुई थी जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक जर्मन यहूदी रोथ्सचिल्ड ने टीपू सुल्तान की हत्या करके उसका सारा सोना उठवा लिया और जहाजों से यूरोप भेज दिया।
यही सोना रोथ्सचिल्ड के बैंक समूह ( IMF, वर्ल्ड बैंक, अमेरिकन फ़ेडरल रिज़र्व ) का आधार बना — इसी से इतिहास की बड़ी बड़ी घटनाओं — दोनों विश्व युद्ध, फ्रांस, रूस, चीन की क्रांतियाँ तथा अनेक नरसंहारों को अंजाम दिया गया, इसी ने रोथ्सचिल्ड को “बिग ब्रदर” की पदवी दिलाई।
पर टीपू सुल्तान के पास यह सोना कहाँ से आया? उसने केरल के प्राचीन मंदिरों के तहखानों से यह सोना चुराया था जो वहाँ हजारों सालों के व्यापार से इकठ्ठा हुआ था। व्यापार — मसालों का और ज्ञान का — जी हाँ! ज्ञान का ।
यह सोना कितना रहा होगा — इसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि एक साधारण सा मंदिर जो टीपू से बच गया — उसने कोशिश की थी पर इसमें वह अपने पैर तुड़वा बैठा और उसे अपनी तलवार खोनी पड़ी, जो अब भारतीय व्यवसायी विजय माल्या के पास है – वह था केरल का श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर ।
जून 2011 में भारत सरकार ने इस मंदिर का एक छोटा तहखाना खोला – और उससे निकले स्वर्ण भंडार से विश्व की आँखें चौंधिया गयीं – इसकी कीमत 24 अरब यू. एस. डॉलर आँकी गई। इसकी प्राचीनता को देखते हुए यह कीमत दस गुनी ज्यादा होगी। अंततः ( सुरक्षा कारणों से ) भारत सरकार को इसके बड़े तहखाने खुलवाने का विचार त्यागना पड़ा। शायद सरकार यह समझ नहीं पा रही थी कि इतने सोने का वह करेगी क्या ?
आज तक लोगों को समझ में नहीं आया कि श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर के इन बंद तहखानों में अज्ञात रूप से पड़े इस विशाल स्वर्ण भंडार का स्रोत क्या था?
आइये अब माली चलें….
मनसा मूसा का जन्म 1280 में हुआ था और वह माली साम्राज्य का शासक था जहाँ उस समय विश्व के 70 % सोने का उत्पादन होता था। आज माली की माली हालत खस्ता है और वह देश दरिद्र हो चुका है। पर मनसा मूसा का राज्यकाल “ माली साम्राज्य का स्वर्णयुग” था।
वह अपनी 1324 में की गई हज यात्रा के लिए मशहूर हो गया। अफ्रीका को पार करते हुए वह यात्रा साल भर में पूरी हुई थी, जिसमे वह पूरे ठाट बाट के साथ चला था – ऊंटों की लम्बी पंक्तियाँ, दास दासी, प्रजाजन, जीन कसे हुए घोड़े, रंगीन ध्वज, सोने के भण्डार – साथ ही उसकी वरिष्ठ पत्नी अपनी पाँच सौ दासियों के साथ थी। इब्न बतूता के अनुसार माली से मक्का की इस यात्रा में 60,000 लोग मनसा मूसा के साथ थे।
बेशकीमती सिल्क के वस्त्र पहने 12,000 नौकर थे जिनमें हरेक के पास 4 पौण्ड सोने की छड़ें थीं। उसके कारवाँ में 100 से अधिक ऊँटों में हरेक के ऊपर 300 पौण्ड से अधिक सोना लदा था। एक अफवाह के अनुसार उसने सारा सोना रास्ते में बाँट दिया।
पर नहीं महाशय ! ऐसा नहीं था !!उसके साथ बहुत से विद्वान भी थे और रास्ते में वह ज्ञान विज्ञान की सारी पुस्तकें खरीदता गया । बहुत से विद्वानों, चिकित्सकों, शिल्पकारों, अध्यापकों, विचारकों और अनुवादकों को वह अपने साथ माली ले गया और वहाँ बड़े बड़े विश्वविद्यालय स्थापित कर दिये।
वह बुद्धिमान राजा जानता था कि ज्ञान का मूल्य सोने से अधिक है।खगोलशास्त्र, चिकित्सा, गणित, विज्ञान आदि से सम्बंधित वैदिक पुस्तकों का मलयालम या संस्कृत से अरबी में अनुवाद मात्र था, जिसका स्वत्व-शुल्क (royalty) कालीकट का राजा वसूलता था।  मनसा मूसा की मक्का यात्रा के बाद माली के साथ साथ भारत का कालीकट भी पुर्तगाल और स्पेन की नज़रों में चढ़ गया। आश्चर्य नहीं कि 1498 में वास्को डि गामा कालीकट पर चढ़ बैठा।
विद्याप्रेमी मनसा ने माली को ज्ञान विज्ञान का एक प्रमुख केंद्र बना दिया। वहाँ के गाओ और टिम्बकटू शहरों में हर तरफ पुस्तकालय थे। लोगों के व्यक्तिगत संग्रह में भी हज़ारों पुस्तकें हुआ करती थीं।
जब यूरोपियन टिम्बकटू पहुँचे तो उन्होंने शहर को खूब लूटा। आज भी माली के रेत के गड्ढों में ये पुस्तकें छिपायी हुई हैं क्योंकि वहां के लोग, चालाक गोरे लोगों के आक्रमण के भय से किसी केंद्रीय पुस्तकालय में भरोसा न करके अपनी बहुमूल्य पुस्तकों को रेत के गड्ढों में छिपा देते थे।
टिम्बकटू की चकाचौंध अब भूली-बिसरी कहानियों तक सीमित रह गई है। समय के प्रवाह में यह शहर अब अपनी रौनक खो बैठा है, पर माली के लोग अपने ज्ञान की रक्षा करने में आज भी पूरे मुस्तैद हैं और वहाँ के पुस्तकालयों में बाहरी लोगों की पहुँच बहुत मुश्किल है।
हो भी क्यों ना !! आखिर अपना सोना देकर उन्होंने “भारत का ज्ञान” हासिल किया था !

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