साका सरहिन्द- छोटे साहिबजादो की लसानी शहादत

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chote sahibzade history in punjabi
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साका सरहिन्द श्री फतेहगढ़ साहिब ऐसा पवित्र स्थान है जिसे सिखों के करबला कहा जाता है। यह भूमि उस समय  की गवाह है जब औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, सिरहिंद के सुब्रा वजीर खान ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के शहीदों को बिना कारण के बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुर्जरी जी को बिना कारण शहीद करा दिया था । साहिबजादों ने इस जगह पर हंसते हुए शहीदी प्राप्त की तथा आने वाली पीढिय़ों के लिए कुर्बानी की नई मिसाल कायम की।आनंदपुर साहिब से चलकर जब गुरु जी अपने परिवार तथा सिंहों समेत सरसा नदी के किनारे पहुंचे तो सरसा में भयानक बाढ़ आई हुई थी। पीछे मुगलों की दुश्मन फौज थी। सर्दी बहुत ज्यादा पड़ रही थी। ऐसे समय में नदी पार करते समय गुरु जी का परिवार बिखर गया। गुरु जी का रसोइया गंगू माता गुजरी व छोटे साहिबजादों को अपने साथ गांव सहेढ़ी में ले आया और फिर उसने लालच में आकर माता जी व साहिबजादों को धोखे से गिरफ्तार करवा दिया। माता जी व साहिबजादों को गिरफ्तार करके सरहिंद सूबा वजीर खान के पास लाया गया। यहां उन्हें ठंडे बुर्ज में कैद करके रखा गया। अगले दिन उनकी कचहरी में पेशी हुई। साहिबजादों को मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा गया तथा और भी कई तरह के लालच दिए गए, परंतु साहिबजादों ने अपने धर्म को त्यागना कबूल नहीं किया। उन्हें 2 दिन कचहरी में पेश किया जाता रहा, परंतु साहिबजादे नहीं माने।अंत में वजीर खान ने साहिबजादों को जीवित ही दीवारों में चिनवाकर शहीद करने का फतवा जारी करवा दिया। साहिबजादों को वजीर खान का आदेश पाकर 13 पौष के दिन दीवारों में चिनवाया गया। जब साहिबजादे दीवारों में बेहोश हो गए तो उन्हें बाहर निकाल कर शहीद कर दिया गया। जब माता गुजरी जी को साहिबजादों की शहीदी के बारे में पता चला तो वह भी अकाल पुरख के चरणों में जा विराजीं। जितना समय माता जी व साहिबजादे वजीर खान की कैद में रहे, उस समय दौरान अपनी जान खतरे में डालकर मोती मेहरा जी उन्हें दूध पिलाते रहे। शहीदी के बाद दीवान टोडरमल ने माता जी तथा साहिबजादों के पवित्र शरीर का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी तो उन्हें कहा गया कि जितनी जगह संस्कार के लिए चाहिए उस पर स्वर्ण मुद्राएं खड़ी करके रखी जाएं। दीवान जी ने अपनी सारी दौलत से यह जगह खरीदी और अंतिम संस्कार किया।बाद में बाबा बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 को सरहिंद पर हमला किया और इसकी ईंट से ईंट बजाकर साहिबजादों की शहीदी का बदला लेकर खालसा का राज कायम किया।

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