जानिए छल कपट का फल
बगुला भगत एक बगुला था।वह बहुत बुरा हो गया था, इतना कि उसको अपने लिए मछली केकड़े पकड़ना भी कठिन हो गया।तब वह उस तालाब पर गया, जहां नगर के लोग नहाने आते थे।एक दिन एक पंडित जाप करके कि अपनी माला तलाब पर ही भूल गया।बगले ने वह माला उठा ली और दिखावा करने के लिए उसे अपने पंजे से नाचने लगा।यह देख कर मछलियों ने समझा-बगुला जाप कर रहा है, इसलिए हमें ना तो पकड़ता है और ना ही खाता है।कई दिनों तक उस तालाब के किनारे बैठ कर वह माला पंचों से फिरता रहा, नाचता रहा।तब तालाब की मछलियों में यह विश्वास जम गया की सच ही यह बूढ़ा बगुला पक्का भगत बन गया है, मांस नहीं खाता, ना किसी जीव की हत्या करता है।
अब वे बिल्कुल निडर होकर उसके पास ही उछलती-तैरती रहती थी। अब एक दिन बगुले ने बड़ी चिंता करते हुए मछलियों से कहा-‘देखो आज एक पंडित ने, जो सबको आगे की बातें बताता रहता है, अपनी पोथी-पत्रा देख कर एक सेठ को बताया कि अब की बरसात होगी ही नहीं।भीषण अकाल पड़ेगा।सब नदी- तालाब सूख जाएंगे।यह सुनकर मैं चिंता में पड़ गया की सूखा पड़ने पर तुम सब की क्या दशा होगी। मछलियों ने सुना तो उनके प्राण सूख गए।बोली-‘अब आप ही कोई उपाय करिए।हमारी आयु की क्या है।आप अनुभवी हैं, अवश्य कोई मार्ग खोज सकते हैं। बगुले ने कहा-एक उपाय है। इसी जंगल में पुष्कर नाम की एक झील है जहां कमल खिलते हैं।वह कभी सुखी नहीं।बहुत गहरी हैं।वही तुम लोग जा कर रहो।मछलिया बोली-काका!भला हमारी औकात क्या, जो वहां पहुंच सके।बगले ने कहा-ठीक है, वहां पहुंचाने का काम मेरा।लेकिन मैं एक बार में एक ही को ले जा सकूंगा।
बगुला एक-एक करके मछली पंजों में दबाकर उस तालाब से ले जाता।बहुत सी मछलियां उस तालाब से चली गई तो 1 दिन एक केकड़े में हठ किया, कहा-काका!मुझे भी पहुंचा दो वहां।बगला उसे भी ले चला पंजों में दबाकर।उड़ते-उड़ते एक टीला आया,तो वहां वह उतरने लगा।केकड़ा बड़ा चलाक था।उसने जो नीचे देखा तो दंग रह गया।यहां तो खाई हुई मछलियों के अंजर पंजर के ढेर हैं।वह समझ गया कि दुष्ट बगुला आज मुझे भी चट कर जाएगा।जैसे ही बंगला नीचे उतरने को हुआ कि उसकी ककड़े ने उस के पंजों से छुटकारा पाते ही बगुले का गला दबोच लिया और जब तक उसे काट नहीं डाला, छोड़ा नहीं। केकडे ने तालाब की शेष मछलियों को बगुला भगत के पेट में जाने से बचा लिया। संसार में ढोंगियों की कमी नहीं दूसरों की भलाई करने वाले विरले ही मिलते हैं।