जलियाँवाला बाग हत्याकांड से हम क्या सीखे ?
जलियांवाला बाग ये देखो यहां चली थी गोलियां , यह मत पूछो किसने खेली यहां खून की होलियां,,एक तरफ बंदूकें दन दन एक तरफ की टोलियां , मरने वाले बोल रहे थे इंकलाब की बोलियां ,, बहनों ने भी यहां लगा दी बाजी अपने जान की, इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की।
भारत की समृद्धि को देख कर सदियों से विदेशी इसकी ओर आकृष्ट होते रहे हैं । कई बार व्यापार के लिए और कई बार अकूत संपदा को लूटने के इरादे से यहां आते रहे हैं । उन्होंने अनेको बार जनसंहार द्वारा हमें डराने का प्रयास किया साथ ही उन्होंने हमारे स्वाभिमान को भी कुचलने का प्रयास किया।
भारत माता के वीर सपूतों ने समय-समय पर ऐसे आतताइयों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया । इसी कड़ी में अंग्रेज व्यापार करने आए यहां की राजनीतिक परिस्थितियों ने उन्हें सत्तारूढ़ होने के लिए प्रेरित किया इसके लिए उन्होंने साम दाम दंड भेद सब तरह से हमारे समाज को प्रताड़ित किया ।
18 57 में उनकी सत्ता को प्रबल चुनौती मिली प्रथम स्वतंत्रता समर की असफलताओं के बाद अंग्रेजों का दमन चक्र और भी तेज हो गया 1857 के महान क्रांति के पश्चात भारत के इतिहास में अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड पहली भयंकर वीभत्स विस्फोटक तथा उत्तेजना पूर्ण घटना थी जिसने ना केवल भारत के जनमानस को क्रोधित किया अपितु ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।
18 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट भारतीयों के प्रबल विरोध के बावजूद पारित हो गया इस एक्ट का चारों और विरोध हुआ और इसे काला कानून कहा गया क्योंकि इसके अंतर्गत भारतीयों की गिरफ्तारी के लिए ना कोई वकील ना कोई दलील ना कोई अपील की गुंजाइश थी । गांधी जी ने भी सरकार को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं होने पर उन्होंने सत्याग्रह का रास्ता अपनाया ।
पंजाब में सभी स्थानों पर हड़ताल रही राजनीतिक महत्व के दो प्रमुख नगरों अमृतसर तथा लाहौर में पूरा बंद रहा अमृतसर के दो बड़े नेताओं डॉक्टर सैफुदीन किचलू तथा डॉक्टर सतपाल ने महात्मा गांधी को पंजाब में आने का निमंत्रण दिया । अमृतसर में क्रमशः 23 मार्च 29 मार्च तथा 30 मार्च को हड़ताल सफल रही ।
8 अप्रैल को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर इर्विंग ने कमिश्नर एच जे डब्ल्यू को पत्र लिखकर स्थिति को खतरनाक बताया और सैनिकों की संख्या बढ़ाने की मांग की । 9 अप्रैल को रामनवमी का त्यौहार हिंदू मुस्लिम एकता का प्रदर्शन करते हुए उत्साह पूर्वक मनाया गया डॉक्टर हाफिज मुहम्मद बशीर रामनवमी शोभा यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे इस हिंदू मुस्लिम एकता से अंग्रेज सरकार और भी भयभीत हो गई ।
9 अप्रैल को ही ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी के पंजाब आने पर रोक लगा दी वह उन्हें पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर वापस मुंबई भेज दिया गया इससे असंतोष और बढ़ गया। अमृतसर में उत्तेजना अधिक थी सरकारी आदेश पर 10 अप्रैल को कमिश्नर ने डॉक्टर सत्यपाल और डॉक्टर किचलू को अपने कार्यालय में बुलाकर गिरफ्तार कर डलहौजी भेज दिया ।
यह समाचार सारे अमृतसर को आंदोलित कर गया लोग डिप्टी कमिश्नर के बंगले की ओर जाने लगे उन्हें हाल गेट ब्रिज के पास रोक दिया गया सरकारी मजिस्ट्रेट ने भीड़ को गैरकानूनी बताया और गोली चलाने का आदेश दिया इस गोली कांड में 20 से 30 भारतीय शहीद हो गए तथा सैकड़ो घायल हुए इस घटना से शहर का वातावरण गर्म हो गया ।
10 अप्रैल को ब्रिगेडियर जनरल डायर को जालंधर भेजकर सेना को बंदूकों और हवाई जहाज से लैस होने को कहा गया तथा लाहौर से भी 200 सैनिक अमृतसर भेजने को कहा गया 11 अप्रैल को प्रातः 5:00 बजे यह सब अमृतसर पहुंच गए ।
12 अप्रैल को 125 ब्रिटिश और 300 भारतीय सैनिकों ने नगर का निरीक्षण किया नगर में शांति थी इसके बाद भी चौधरी और दीनानाथ सहित 12 प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी हुई इनकी रिहाई के लिए एक मीटिंग हिंदू सभा हाई स्कूल में होने वाली थी जिसे जनरल डायर के आदेश से कैंसिल कर दिया गया।
13 अप्रैल को जनरल डायर ने घोषणा की कि सभी बैठकों और जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। रात 12:00 बजे तक अपने घरों में रहने का आदेश जारी हो गया। सरकारी आदेशो की परवाह न करते हुए गुरुदित्ता व भालू नामक युवक टीन पीट-पीटकर मुनादी कर रहे थे कि जलियांवाला बाग में आज शाम को एक सभा होगी जिसकी अध्यक्षता अमृतसर के जाने-माने प्रतिष्ठित व्यक्ति कन्हैयालाल करेंगे।
शाम को जैसे यह सूचना मिली की जलियांवाले बाग में सभा हो रही है तो डायर झन्ना उठा और अपने 50 बंदूकधारी सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा। समाजिक नेता दुर्गादास बोलने ही वाले थे कि जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया 10 मिनट तक गोलियां चलती रही जब तक की सभी गोलियां खत्म नहीं हो गई ।
मिनटों में हाहाकार मच गया लाशों के ढेर लग गए जिधर भी लोग जान बचाने के लिए भागे उस तरफ ही गोलियां चलाई उसका उद्देश्य सभा को भंग करना नहीं था बल्कि वह तो सबक सिखाना चाहता था ताकि लोग ब्रिटिश शासन से डर कर रहे कोई आदेश की अवहेलना ना कर सके । जलियां वाले बाग में एक कुआं था कुछ लोग जान बचाने के लिए उसमें कूद गए उनकी देखा देखी और लोग भी कुएं में कूदने लगे बाद में 120 लाशें तो उस कुएं से निकली ।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 लोग मारे गए पंडित मदन मोहन मालवीय जी के अनुसार मृतकों की संख्या एक हजार थी जबकि स्वामी श्रद्धानंद जी ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर मृतकों की संख्या 1500 के आसपास बताई।
इस हत्याकांड के बाद पंजाब में स्थान स्थान पर मार्शल ला लगा दिया जिसके अंतर्गत 218 अपराधी घोषित किए गए इनमें से 51 को मौत की सजा तथा अन्य को भिन्न-भिन्न सजा सुनाई गई ।
13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में उस समय एक बालक उधम सिंह था जिसने अपनी आंखों से इस हत्याकांड को होते देखा तथा अपने कानों से हजारों लोगों की चीख पुकारो को सुना था, जिसे वह जीवन भर नहीं भूल सका । अपमान की आग उसके हृदय को जलाती रही अंत में 1940 में इंग्लैंड जाकर उधम सिंह ने अपने भारतीय भाइयों की हत्या का बदला ओडायर को मार कर ले लिया और हंसते हंसते फांसी पर झूल गया।
जलियांवाले बाग का हत्याकांड अंग्रेजों के मुंह पर एक बहुत बड़ी कालिख है किस तरह दुनिया को सभ्यता सिखाने वाले अंग्रेजों ने भारतीयों को निर्ममता से मारा ।
भारतीयों पर गोली चलाने वाले भारतीय सैनिक थे लेकिन उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि जिनको वह गोलियां मार रहे हैं वह भी भारतीय हैं उनके भाई हैं , मानसिक गुलामी तथा निजी स्वार्थ के कारण वे देश और अपने भाइयों को भूल गए और अपनी ही गोलियों से उन्होंने अपने भाइयों की छाती छलनी कर दिया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के इस शताब्दी वर्ष में हम अपने बारे में विचार करे की क्या मैं देशहित में सोचता हूँ तथा स्वयं कष्ट उठाकर समाज को जोड़ने तथा सुखी रखने के लिए प्रयास कर रहा हूँ । देश के स्वाभिमान को जाग्रत करने वाली इस घटना की चर्चा वर्ष भर परिवारों में , स्कुलो में , सेमिनारों तथा अन्य सार्वजनिक मंचो पर हम सब को करनी चाहिए।
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