व्रत में फलाहार से पाए नयापन
नवरात्र व्रत के दौरान कुछ श्रद्धालु फलाहार रखते हैं।इसका निहितार्थ यह है कि साधना-उपासना यज्ञ-अनुष्ठान-दान तप से जो प्राकृतिक ऊर्जा का फल मिलता है, उसका आहार किया जाए जिस प्रकार हर दिन जीवन के लिए आहार के रूप में भोजन लेते हैं उसी तरह शरीर में विद्यमान ऊर्जा शक्ति (मेटाबोलिज्म) को भी रिचार्ज करते रहना पड़ता है।जब हम अनाज के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं, तो शरीर के रसायनों को उसे सुपाच्य करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है।इस प्रक्रिया को विश्राम देने की भी आवश्यकता है।लिहाजा इस अवधि में कुछ लोग दूध, दही, तो कुछ लोग फलाहार, तो कुछ लोग सिर्फ जल और वायु पीकर आंतरिक यंत्र-तंत्र मंत्र की तरंगों से सशक्त करते हैं।उदाहरण के लिए किसी वाहन के पहिए में हवा कम है,तो वाहन संचालन प्रभावित हो जाता है।हमारा शरीर इसी वायु से संचालित है।योग विज्ञान की मानता है कि शरीर वायु का समुचित प्रयोग मूलाधार से सहसत्रर को एक्टिव करता है।इसे ही भगवान विष्णु योगेश्वर कृष्ण का चक्कर मारना उचित प्रतीत होता है।इसलिए योग आदि के जरिए शरीर में हवा का अधिक से अधिक उपयोग उत्तम स्वास्थ्य देने वाला होता है।
व्रत में पथय का अनुसरण और अपथय का निषेध किया गया है।जीवन में हम उसी पथ को चुनते हैं, जो सुगम हो और कांटो से मुक्त हो।ऐसे पथ, जिसमें गंदगी, दुर्गंध, रास्ता जाम हो, तो उसे हर कोई बचना चाहता है।प्राय रास्तों में सड़क के किनारे पर गंदगी, अतिक्रमण होता रहता है, तो उसे सशम संस्थान हटाते हैं।शरीर की भोजन- नलियो तथा अन्यान्य हिस्सों में अवरोध को हटाने के लिए व्रत कथा फलाहार का विधान चिकित्सा विज्ञान भी बताता है।इसी के साथ शरीर को हर हाल में जीने के लिए तैयार करने का उपक्रम भी व्रत रखकर फलाहार करना है। फलाहार का सीधा अर्थ है कि मौसमी फल स्वास्थ्य के लिए ज्यादा उपयोगी होते हैं।बीज खाद से बजाई गई वस्तुओं की जगह लंबी अवधि तक गर्मी-जाड़े से लड़ते हुए जो पेड़ फल दे रहे हैं, उनमें विशेष ऊर्जा-तत्व हैं।इसलिए भी फलाहार कर इस ऊर्जा को सचित किया जाए।वर्षभर शरीर तंत्र को एक ही पद्धति से काम करना पड़ता है,जो फलाहार के माध्यम से बदल जाता है।बदलाव नयापन लाता है।हम 6 घंटे सोते हैं, यानी इस अवधि में आंखें देखने के काम से विरत रहती हैं। आंखों के इस व्रत का ही परिणाम है कि आंखें अगले दिन देखने में सक्षम रहती हैं।मौन-शक्ति का भी यही लाभ है।