लौट के बुद्धू घर को आए कहानी
एक व्यक्ति कमाता तो कुछ भी ना था, पर खाने के समय अपनी बड़ी धोस जमाता अपनी पत्नी पर। पत्नी बेचारी पड़ोस के घरों में पीसना -कूटना करके किसी प्रकार चार पैसे या कुछ आटा जुटा लेती थी, उसी से दोनों की गुजर-बसर होती थी उस व्यक्ति की आदत थी प्रतिदिन यह धमकी देने की कि ”देखो, यदि तुम मुझे ठीक समय पर रोटी बना कर ना दोगी, तो मैं महात्मा संतोबा पवार के पास जाकर साधु हो जाऊंगा।” वह गांव था,रोजन ।महात्मा संतोबा वही अपनी पत्नी सहित साधु जीवन बिताते थे। जो कुछ रुखा सुखा मिलता, उसी से संतुष्ट रहते। संतोंबा प्रतिदिन दोपहर में एक समय ही भिक्षा मांगने गांव में जाते।
एक दिन वे उधर से निकले, जिधर उस निठल्ले मनुष्य का घर था। संतोबा को देखकर निठल्ले की पत्नी दुखी होकर उनके पास आयी और अपने पति की धमकी की बात उन्हें बतायी। संतोबा ने कहा- अब जब तुम्हें ऐसी धमकी दे तो कहना कल जाना हो तो अभी चले जाओ।’ फिर तो वह बड़ा चिंतन दिखा।सोचने लगा -क्या सच ही जाना पड़ेगा ? ना जाने मैं भी अब उसकी मानहानि की थी। अतः कपड़े पहन कर चल पड़ा। संतोबा के पास जाकर बोला-” महाराज मुझे शिष्य बना लो । बहुत कर ली घर- गृहस्थी।”संतोबा. राजी हो गए धीरे-धीरे शाम हो गई। वही उसे अभी तक कुछ भी खाने को ना मिला। आते भूख से कुल बुला रहा थी तभी संतोकबा ने उससे कहा नदी से कमंडल में जल बदलाव नदी दूर ही थी आते जाते वह भूख से व्याकुल हो गया इसी बीच संतोकबा ने उसके सब कपड़े फाड़े और कूड़े में फेंक दिए वह जल लेकर लौटा तो उसे पहनने की एक लंगोटी दी फिर संतोकबा उनकी पत्नी और वह उनका नया जिला भूख मिटाने बैठे तीनों के पास एक ही प्रकार के कुछ जंगली कंद मूल थे जो स्वाद में कड़वी थी जिला खाते-खाते मुंह बना कर बोला गुरुजी बड़ी कड़वाहट है कुछ मीठा हो तो दे दो संतोकबा ने उसे तब नीम की कुछ पंक्तियां भी उन्हें चबाते हुए वह रो पड़ा सोचने लगा कहां फंस गए इससे तो घर ही बोला था जब 1 दिन का यह हाल है तो महीने भर में तो मेरा कचुंबर ही निकल जाएगा भूख से सन तोबा ने कहा अभी से रोने लगे साधु होना क्या हंसी खेल है लौट जाओ घर जिला महाशय को मानो झील से छुटकारा मिला तुरंत वहां से चल पड़े उसे आया देख लोगों ने कहा लौट के बुद्धू घर को आए आगे कभी वैसी धमकी उसने नहीं दी।