नाक से साँस ले
साँस पर ध्यान लगाए। दिन में ऐसा एक-दो बार तो जरूर करें। साँस को धीमें- धीमें लेकर धीरे से छोड़ने का प्रयास करें। हल्की और धीमी साँस ले। इसके लिए दो व्यायाम भी कर सकते हैं। पहला, नाक से ठंडी वायु के प्रवेश पर ध्यान लगाए और फिर गरम श्वास के बाहर निकालने पर।दूसरे में, तीन तक गिनते हुए साँस को रोके और फिर पांच तक गिनते हुए सास को छोड़ें।इससे रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है, किसी शारीरिक गतिविधि के दौरान उखडी सांस पर काबू पाने में सहायता होती है और रक्त का ऑक्सीजन सेचुरेशन बेहतर होता है।
साँस डायफ्राम के संग ले। डायफ्राम शवास की मुख्य मॉसपेशी होती है,जो एक छतरी की सीने और पेट के बीच मौजूद होती है।डायफ्राम के संग सांस लेने को बेली ब्रीदिंग भी कहा जाता है।इसके अभ्यास के साथ पीठ के बल लेट जाएं, पैरों को हल्का सा मोडे। पेट पर एक किताब रखें और पांच तक गिनते हुए छोड़े।ध्यान इस पर देना है कि सांस लेते समय किताब ऊंची हो जाए और छोड़ते समय नीचे आए। किताब की गति को जितना कम कर सके, उतना बेहतर होगा।इस अभ्यास को पंद्रह मिनट के लिए संभव हो तो दिन में दो बार करें।रात को सोने से पहले करने से नींद की गुणवत्ता बहुत बेहतरीन हो जाएगी। इस अभ्यास को उन लोगों को जरूर करना चाहिए जिन्हे वयग्रता, बेचैनी और उलझन होने की शिकायत रहती हो।
साँस सुसंगत करें। यह हृदय रोगियों के लिए बेहतर फायदेमंद अभ्यास है।आमतौर पर हम 3 सेकंड में ही नाक से साँस लेकर छोड़ देते हैं यानी श्वसन का समय बहुत कम होता है।सांसो के समन्वय में 5 सेकंड तक नाक से सांस को भीतर लेने का अभ्यास करना होता है, जिसके दौरान पेट के फूलने और धर यानि कंधो और सीने के फैलने को अनुभव करें। फिर 5 सेकंड तक सांस छोड़ें जिस दौरान पेट के पिचकने और धड़ के सिकुड़ने को महसूस करें। इससे सांस का चक्कर 10 सेकंड का हो जाएगा, जो हर मिनट की छह साँस के बराबर होगा ।
शुरुआत अगर 5 सेकंड से ना कर पाए, तो दो से तीन से शुरू करें।लेकिन ध्यान रखें कि सांस लेने और छोड़ने का समय समान होना चाहिए। इस अभ्यास से सांस की गति पर नियंत्रण पाया जा सकता है।पैलिपटेशन के कारण बढ़ी दिल गति में यह श्वसन लाभप्रद है।