वृन्दावन के बांकेबिहारी

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वृन्दावन के बांकेबिहारी

बीकू नाम का लड़का रेलगाड़ी में साफ सफाई करके उससे जो पैसे मिलते उससे अपने घर का गुजारा करता था!

उसके घर में एक बूढ़ी मां एक छोटी बहन और बीमार पिता थे! दिन रेल गाड़ी की सीट के नीचे से सफाई करते करते उसको एक पर्स मिला पर्स को पकड़ते ही उसके हाथ कांपने लगे उसको लगा कि इसमें बहुत सारे पैसे होंगे उसने जल्दी से परस उठाया और अपनी निकर की जेब में डाल लिया वह इस इंतजार में था कि कब गाड़ी रुके और कब मैं इस पर्स  को खोल कर देखूं  कि इस में कितने पैसे हैं और उन पैसों से में अपने घर के लिए कुछ राशन बीमार पिता के लिए दवाई लेकर जाऊं।स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही वह जल्दी से गाड़ी से उतरा और कहीं एकांत में जाकर जल्दी-जल्दी उस पर उस को खोल कर देखने लगा पर्स को देखते ही उसके होश उड़ गए क्योंकि पर्स बिल्कुल खाली था उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया! पर्स की पिछली जेब में अचानक उसको किसी भगवान की तस्वीर नजर आई तस्वीर को देखते ही जैसे उसके शरीर में हलचल सी होने लगी और उसकी आंखों से दो मोटे मोटे आंसू निकल कर उस तस्वीर के चरणों में गिर पड़े! यह आंसु पर्स में कुछ ना मिलने के कारण थे या उस तस्वीर में मिले भगवान को देखकर थे! बहुत हिम्मत  कर के वो वहां से उठा और थके हुए कदमों से चलने को तैयार हुआ चलते चलते वह सोचने लगा कि आज तो घर में खाने को कुछ नहीं है मां भी भूखी है बहन की पेट में  भी अन्न का एक दाना नहीं गया बीमार पिता को भी दवाई खाने से पहले कुछ खाना था यही सोचते सोचते गली की नुक्कड़ पर किसी की शादी हो रही थी, शादी में बचा हुआ खाना वहां का सेठ लोगों को बांट रहा था तो भी को भी लाइन में लग गया तो उसको भी 2-3लिफाफे भर कर खाने के लिए मिले! उसकी तो खुशी का जैसे ठिकाना ही नहीं था घर जाते ही उसने यह खाना अपनी मां को दिया और कहा कि मां देखो आज मैं कितना खाना लाया हूं मां कहती है बेटा ला तेरी बहन  भुख के कारण सुबह से रो रही है और मैंने भी सुबह से कुछ नहीं खाया और तेरे बीमार पिता को भी कुछ चाहिए खाने के लिए ! भीकू हैरान था कि जो सेठ उसको देख कर नाक मुंह सिकोड़ता है आज उसने मुझे खाने को क्यों दे दिया तभी उसने जेब में से पर्स निकाल कर और इस तस्वीर को देखा और उसका धन्यवाद किया कि शायद आज आपके कारण ही मुझे खाना मिला है ।मां ने कहा कि यह खाना तो कल पूरा दिन चल जाएगा अगले दिन भी को फिर काम के लिए निकला स्टेशन पर पहुंचते ही वह गाड़ी में चढ़ने लगा अभी एक भी बीमार और बूढ़ी औरत उसको कहने लगी कि उसके लिए टिकट ले आओ मेरे पैर में चोट लगी है बीकू बोला हां हां मां जी मैं ला दूंगा! उसने उसको 500 का नोट दिया और भी झट से टिकट लेने के लिए चला गया तभी गाड़ी की सीटी बज गई और गाड़ी चलने के लिए तैयार थी तो बीकू भागा भागा! रेल गाड़ी की खिड़की से से ही उस बूढ़ी औरत को टिकट पकड़ा आता है लेकिन बाकी पैसे उसके हाथ में ही रह जाते हैं तो बूढ़ी औरत उसको खिड़की से इशारा करती है बाकी तू रख ले बाकी ₹275 बचे थे बीकू  हैरानी से हाथ में पकड़ के पैसों को देखता रहा! तब तक गाड़ी जा चुकी थी वह गाड़ी में ना चढ़कर घर की तरफ चल पड़ा और रास्ते में उसने एक हफ्ते का उन पैसों से राशन ले लिया और मां को देखकर बोला देखो मां आज तो खूब कमाई हुई यह एक हफ्ते का पूरा राशन है मां यह देखकर बहुत खुश हुई तभी उसने जेब में से फिर वही भगवान को निकाल कर देखा और कहा कि यह सब चमत्कार आपके कारण ही हो रहा है !मैं नहीं जानता कि आप कौन हो तभी उसने जे में से तस्वीर को निकाल कर अपनी मां को दिखाया और कहा की मां यह कौन से भगवान है? मां ने उसकी तरफ नहीं देखा क्योंकि वह तो इतना राशन देखकर बहुत खुश हो रही थी बीकू ने देखा कि मा नहीं देख रही तो उसने पर्स  अपनी जेब में ही रख लिया फिर एक दिन जब वो रेल गाड़ी में सवार होकर जा रहा था और सफाई की सीटों के नीचे सफाई कर रहा था तभी आठ 10 लोग वही तस्वीर वही तस्वीर को लेकर जोर जोर से हरे कृष्णा का जाप करें हैं! बीकू उस तस्वीर को देखकर हैरान हो गया और सीट पर बैठी एक बूढ़ी औरत को हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से बोला कि माताजी यह कौन है और आप यह क्या भजन कर रहे हो?मुझे भी बताओ तो उसकी तो वह औरत कहती कि यह बांके बिहारी जी है! यह वृंदावन में रहते हैं, जो भी इन की शरण में जाता है बांके बिहारी उसकी सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं! यह वृंदावन के मालिक ही समझ लो बीकू जेब में से उस तस्वीर को निकालकर उस माताजी को दिखाता है कि यह बांके बिहारी जी हैं तो वह कहती हां हां बेटा यह बांके बिहारी जी हैं !यह वृंदावन में रहते हैं तो बीकू की आंखों में फ़िर आंसू आ गए वह कहता कि मैंने भी वृंदावन जाना है, की क्या मुझे लेकर जाओगे,तो माता जी कहते हैं यह गाड़ी वृंदावन ही जा रही है चलो तू मेरे साथ ही चलो बीकू को आप पीछे अपनी मां और बहन की खाने की कोई चिंता नहीं थी,क्योंकि बिहारी जी ने तब तक लिए तो उनका इंतजाम कर ही दिया था बीकू माताजी और 8-10 लोगों के साथ चल पड़ा वृंदावन पहुंचते ही वह लोग अपने रस्ते चल पड़े बीकू को कुछ भी नहीं पता था कि वह कहां जाए बिहारी जी कहां रहते हैं तो वह लोगों को बिहारी जी की तस्वीर को दिखाता हुआ कहता है कि यह बिहारी जी कहां रहते हैं,तो वृंदावन के लोग उस पर हंसते हुए कहते हैं कि यह वृंदावन उनका ही है!

 यह हर जगह रहते हैं फिर वह कहता कि उनका घर कहां है तब एक सज्जन पुरुष बीकू को मिला और कहने लगा कि चलो मैं तुझे बिहारी जी के पास लेकर जाता हूं तब उसको बिहारी जी के मंदिर लेकर आ मंदिर में बहुत भीड़ थी बीकू को कुछ भी नजर नहीं आ रहा था वह दूर से ही जी को देखकर निहाल हो गया। उसकी आंखों में झर झर आंसू बहने लगे आंसू के कारण उसकी उसकी आंखों में बिहारी जी की छवि धुंधली धुंधली आने लगी तभी मंदिर की लाइट चली गई आंखों में धुंधलापन के कारण और लाइट लाइट ना होने के कारण भी को को कुछ भी नजर नहीं आ रहा था तभी उसको अपने पास एक तेज रोशनी नजर आई और उसको लगा कि उसका हाथ कोई खींच रहा है।जब उसने ध्यान से देखा एक छोटा सा बालक उसको खींच कर कह रहा है- बीकू तूम आओ मेरे साथ। वह बालक उसको एक कोने में ले जाकर कहता है कि अब आए हो मैं तो कब से तुम्हारी राह देख रहा हूं! बीकू कहता तुम कौन हो? घबराहट के कारण भी कुछ से बोला भी नहीं जा रहा था, मैं वही हूं जिसको तू अपनी जेब में लेकर घूम रहे हो! तेरा मेरा नाता तो उसी दिन से बन गया था जब तूने मेरी तस्वीर को देखकर अपने आसुओ से मेरे पैरोको धोया था,तबसे तू मेरी शरण में है, और मैं कब से तुम्हारी राह देख रहा हूं! आज तुम आए हो अब ना मैं तुम्हें जाने दूंगा बीकू से कुछ भी ना बोला गया और मन में सोचने लगा कि मैं यहां रह जाऊंगा तो मेरे माता-पिता और छोटी बहन का क्या होगा? बिहारी जी उसके मन की मंशा को समझ गए और कहने लगे तू उनकी चिंता मत कर! वहां पर एक सेठको जिस बस्तीें मे तेरे माता-पिता रहते हैं, मंदिर बनाना था,उन्होंने उस झोपड़ी  के बदले तेरे माता-पिता को एक पक्का घर बना कर दे दिया है, और साथ में खाने पीने का भी पूरा प्रबंध है, तो उनकी चिंता मत कर अब तू यहीं रह !अब से तू मेरा सखा है ।वह कहता मैं यहां कहां रहूंगा तो बिहारी जी बोले आज से तू बाहर माला फूलों की दुकान लगाया करेगा, और आज से मैं तेरे हाथ के बने फूलों की माला ही पहनुंगा ।आज से तू मेरी शरण में है। मेरी शरण में जो एक बार आ जाता है, मैं उसका साथ नहीं छोड़ता। बीकु को तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा था,और वह आंखों में आंसू की धारा बहाता हुआ बिहारी जी का पांव में गिर पड़ा। जब उसने ऊपर उठकर देखा तो बिहारी जी वहां नहीं थे वह तो मंदिर में विराजमान थे! बिहारी जी की अपने ऊपर ऐसी कृपा देखकर बीकू धन्य धन्य हो उठा,और बिहारी जी को एकटक निहारता रहा और मन में बोलता रहा बांके बिहारी लाल की जय हो

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