आभूषणों से प्यार नहीं
कमला और बिमला दोनों बालिकाएं एक ही कक्षा में सहपाठनी थी। दोनों में बड़ी मित्रता थी।विमला को गर्व था कि कमला उसकी सहेली है। एक दिन क्या हुआ कि विद्यालय में खेल के समय विमला के कान का एक बुंदा कहीं गिर गया।विमला बड़ी दुखी हुई क्योंकि वह सोने का था।घर वाले डांटेगे, यह डर भी उसे सता रहा था।कमला निर्धन परिवार की थी। उसके कानों में पीतल की बालियां हुई थी। उसने अपनी सहेली को बहुत समझाया कि खो गया तो अब इतना दुख मत करो।घर वाले तुम्हें दूसरा बनवा देंगे।फिर भी विमला बहुत उदास बनी रही ।तब कमला ने उसे एक कथा सुनाई जो सचमुच एक परिवार में घटित हुई थी। उसने बताया संस्कृत के महाकवि माघ का नाम तुमने सुना होगा।वह उज्जैन में जब रहते थे तो एक दिन उनके पास एक बहुत धनहीन व्यक्ति आया।वह भी पढ़ा लिखा पंडित।उसकी पुत्री का विवाह था ,पर उस पंडित के पास कुछ भी धन ना था।उसने कवि माघ से कुछ धन मांगा।उस समय मान भी खाली हाथ थी उसके पास भी धन नहीं था। वह घर में पत्नी के पास गये । देखा वह सो रही है।मांघ ने उसके एक हाथ से सोने का कंगन धीरे से निकाल लिया और उस पंडित को देने जाने ही वाले थे की पत्नी जाग गई और वह बिना बताए ही समझ गई कि इन्हें किसी को कगन देने की आवश्यकता पड़ गई है। बस उस उदारमना पत्नी ने तुरंत अपने दूसरे हाथ का भी कंगन निकाला और पति से कहा-एक कंगन से क्या होगा, जिसे दे रहे हैं उस बेचारे को यह दूसरा कंगन भी दे दे।’ माघ चुप ।जब पत्नी ने उठकर दूसरा कंगन भी उनके हाथ पर रख दिया। कवि ने उस निर्धन पिता को दोनों कंगन दे दिए तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ सो जा अब तो मैं इतने धन से पुत्री का विवाह अच्छी प्रकार कर सकूंगा। और माघ की पत्नी प्रसन्न थी कि उसके आभूषण किसी की सहायता करने में काम आए। उसे उस सोने के आभूषणों से मोह ना था।यह कथा सुनकर विमला का मन हल्का हो गया। बल भी मिला।