वसंत पंचमी का महत्व
ठंड के अंतिम पड़ाव के रूप में बसंत ऋतु का आगमन प्राकृतिक बसंती रंग में सरोबार कर जाता है। माघ के महीने में पंचमी को वसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है।इस समय मौसम बहुत सुहावना होता है और इस मौके को और रुमानी बना देता है।इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है और सबसे महत्वपूर्ण विद्या देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।इस दिन लोग कुर्ता पजामा और स्त्रियां पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं।बसंत पंचमी को ज्ञान पंचमी भी कहते हैं।श्री कृष्ण ने की प्रथम पूजा विद्या की अभिलाषा रखने वाले मनुष्य के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। सबसे पहले मां सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ करते हैं।ऐसा करने पर मां प्रसन्न होती है और बुद्धि तथा विवेकशील आशीर्वाद देती है।विद्यार्थी के लिए मां सरस्वती का स्नान सबसे पहले होता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे भी पौराणिक कथा है।इनकी सबसे पहले पूजा श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने की।देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गई और पति के रुप में पाने की इच्छा करने लगी।भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वह तो राधा के प्रति समर्पित है,परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाला माघ मास की शुभ लक्ष्मी को तुम्हारा पूजन करेगा। यह वरदान देने के बाद स्वयं श्री कृष्ण ने पहले देवी की पूजा की सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती बुद्धि, विद्या और ज्ञान की सर्वेश देवी है।बसंत पंचमी का अक्सर इस देवी को पूजा के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त है,क्योंकि यह साल में धरती जो रूप धारण करती है, वह सुंदरतम होता है।इस दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है।देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाता है।नव बालक-बालिका इस दिन में विद्या का आरंभ करते हैं।संगीत और वाद्य यंत्रों का पूजन करते हैं। स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है।