कहानी : लक्ष्य पर नजर

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कहानी : लक्ष्य पर नजर

वर्ष 1998 की बात है।एशियाई खेलों में मणिपुर के डीग्को सिंह ने बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल जीता।मणिपुर में तो यह उत्सव का दिन था। डीग्को की इस सफलता से राज्य की एक किशोरी बेहद रोमांचित हुई।वह एक किसान की बेटी थी।जिसे यूं तो खेल सभी खेलों से लगाव था, लेकिन डीग्को की सफलता ने उसके भीतर एक बॉक्सर बनने की चाहत पैदा कर दी।उसने कल्पना में खुद को बॉक्सिंग करते देखा,तो उसके अपने भीतर एक सनसनी महसूस की।उसने सोचा;वह भी उनकी तरह अपने प्रांत और देश का नाम रोशन करेगी।अगले ही दिन वह उस समय के चर्चित कोच ऍम. नार्जित सिह के पास पहुची और बोली सर मुझे मुकेबाजी सीखनी है।सिह ने हेरात भरी नजरों से किशोरी को देखा।कुछ देर गौर से देखते रहे और फिर बोला,”नहीं मैं आपको नहीं सिखा सकता।किशोरी ने खूब मिनते की लेकिन कुछ नहीं माने। वह वापस लौट आई, पर निराश नहीं हुई।वह दूसरे कोच के पास जा पहुंची।सिह की तरह दूसरे कोच ने भी इंकार कर दिया।उसने कहा,”तुम बहुत दुबली पतली हो,ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाओगी।‘पर उस किशोरी की जिद के आगे कोच को अपना फैसला बदलना पड़ा।वह उसे कोचिंग देने के लिए तैयार हो गए। वह किशोरी दिन-रात मेहनत करने लगी।वह थी मेरी कॉम जो बॉक्सिंग में अपनी उपलब्धियों के कारण आज सब के लिए एक मिसाल बन गई है।
दरअसल, मैरी कॉम ने कभी अपने पैर वापस नहीं खींचे।जो एक बार ठान लिया। सो ठीक कि शुरू में उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा।तमाम तरह की बांधाए आई, लेकिन उन्होंने इन सभी पर ध्यान नहीं दिया।उनकी नजर अपने लक्ष्य पर टिकी रही।अकसर किशोर मन कई तरह के स्वपन देखते हैं,लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास नहीं करते हैं।थोड़ा-बहुत हाथ-पैर मारते हैं और असफलता मिलने पर निराश होकर बैठ जाते हैं।उन्हें लगता है कि यह उनके लिए संभव नहीं है या फिर उनकी किस्मत में ऐसा शायद नहीं लिखा है।यह एक गलत सोच है।अगर मैरी कॉम ऍम.नार्जित सिंह द्वारा इंकार करने पर निराश होकर बैठ जाती,तो शायद आज इस मुकाम पर नहीं पहुंचती।कई बार ऐसा भी होता है कि हम आगे बढ़ते हैं,तो हमें कई रास्ते बंद मिलते हैं।इसका अर्थ यह नहीं है कि हम हताश होकर लौट जाएं।हमें फिर प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एक रास्ता बंद होता है,तो दूसरा जरुर खुलता है।थोड़ी देर जरूर हो सकती है,पर हमें धैर्य रखना होगा।जब तक अपना लक्ष्य हासिल ना हो,व्यक्ति को पूरे धैर्य और लगन के के साथ अपने काम में जुटे रहना चाहिए।
यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि हमारे पास साधन की कमी है।मैरी कॉम का जीवन तो अभावों से भरा था, लेकिन बॉक्सिंग में शिखर पर पहुंचने की जिद ने इस कमी को कामयाबी की राह में आने आने नहीं दिया।अगर कोई नौजवान ठान ले तो उससे कुछ करना है,तो संसाधन की अवस्था भी हो जाती है सच तो यह है कि ऐसे लोगों की मदद के लिए दूसरे कई लोग भी सामने आ जाते हैं।वही लोग सहायता करने लगते है, जो कभी मजाक उड़ाया करते थे। जितना लक्ष्य बढ़ा हो,उसे उन लोगों की बातें नहीं सुननी चाहिए,जो केवल हस्तोत्साहित करते रहते हैं। कुछ अपने लोग अनजाने में ऐसा करने लगते हैं, जैसे मेरी कॉम को उनके परिवार के लोगों ने ही बॉक्सिंग में आने से रोका था।उन्होंने उनकी बातें नहीं सुनी और अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा।आज उन्हें बॉक्सिंग में उतरने से रोकने वाला परिवार उन पर गर्व करता है। भारत युवायो का देश है।अगर हर युवा अपने जीवन में एक लक्ष्य चुने और उसे हासिल करने के लिए जुट जाए तो असाधारण परिवर्तन हो सकते हैं।

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