कहानी : वास्तविक और बनावट
वास्तविक और बनावटी भारत की कलाकारी गिरी एक समय दूर दूर तक विख्यात थी।भारत में ही एक बड़ा प्रतापी राजा था।उसकी सभा में बड़े बड़े गुण कवि और कलाकार रहा करते थे।एक बार एक कारीगर राज्यसभा में आया और उसने अपना बना या नकली फूलों का एक बड़ा सुंदर हार राजा को भेंट किया। वास्तव में हार ऐसा बना था कि बिल्कुल सच मुच के फूलों का जान पड़ता था।दूर से पास से चाहे जिस प्रकार देखा जाए उसे कोई नकली नहीं बता सकता था।फूलों की कलियों में ऐसी ही कोमलता रंग और पत्तियां बनी थी कि जो देखता उसे वास्तविक ही समझता उस समय राजा के सभासद वहां ना थे दूसरे दिन राजा ने आज राज्यसभा में रखवाए और सभासदों से कहा इन में सच्चे हार की पहचान कौन कर सकता है।बहुत से शवासन दो ने उन दोनों हाथों को पास से देख कर छू कर रखा पर कोई भी उन दोनों में से वास्तविक और बनावटी की पहचान ही नहीं कर पाया।अभी वहां महाकवि कालिदास आए उनसे भी राजा ने कहा कि कालिदास बता सकते हो इन में सच्चे फूलों का हार कौन है और कृत्य कौन कालिदास ने कुछ पल सोचा फिर कहा महाराज यहां प्रकाश कम है हार बाहर निकालकर भवन के खुले आंगन में रखवाए गए।बाहर के आंगन की धूप में इंहें रखवाए तब पहचान करुंगा हार बाहर निकाल कर भवन के खुले आंगन में रखवाए गए जैसे ही हार वहां रखे गए कुछ ही देर में जाने कहां से मधुमक्खियां आए और लगी उनमें से एक हार पर मंडराने 12 मधुमक्खी फूलों का रस चखने के लिए बैठ भी गई एक हार पर किंतु दूसरे हार पर कोई भी मधुमक्खी ना तो बैठी ना उसके ऊपर मंडल तुरंत कालिदास ने राजा से कहा महाराज जिस हार पर मधुमक्खियां चक्कर लगा रहे हैं वह वास्तविक है कालिदास ने सचमुच के पुष्पहार की पहचान के लिए दोनों हाथ बाहर धूप में इसलिए रखवाए थे कि मधुमक्खियां अंदर आती नहीं राजा ने प्रसन्न होकर कालीदास को पुरस्कार दिया।