प्रेरक कहानी सिर्फ आपके लिए …

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प्रेरक कहानी सिर्फ आपके लिए …

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एक राज्य में एक पंडितजी रहा करते थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे। एक दिन उस राज्य के राजा ने पंडितजी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। “आप इतने बुद्धिमान हैं, किंतु आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों हैं?” राजा ने पूछा।
राजा का प्रश्न सुनकर पंडितजी को बुरा लगा। उन्होंने पूछा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं राजन?” “पंडितजी, आपके पुत्र को यह नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है।” राजा बोले।
यह सुनकर सारे दरबारी हँसने लगे। सबको यूं हँसता देख पंडितजी ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया। किंतु वे बिना कुछ कहे अपने घर लौट आये। लेकिन वह बहुत उदास थे और उनके कानों मे बार बार राजा के शब्द और दरबारियों की हँसी गूँज रही थी।
अपने पिता को उदास देख कर पुत्र ने पूछा, “पिताजी आप आज इतने उदास क्यों हैं?”पंडितजी ने बहुत उदास मन से कहा, “क्या तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे?” “पूछिये पिताश्री,” पुत्र बोला। “यह बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” उन्होंने पूछा। “सोना अधिक मूल्यवान है,” पुत्र ने तपाक से उत्तर दिया। पुत्र का उत्तर सुनने के बाद पंडितजी ने पूछा, “तुमने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है, फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है।”
पिताजी की बात सुनकर पुत्र सारा माज़रा समझ गया। वह उन्हें बताने लगा, “पिताश्री! मैं प्रतिदिन सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ, उस रास्ते के किनारे राजा अपना दरबार लगाते है, मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते हैं, और अपने एक हाथ में सोने और एक हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर पूछते हैं कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो। मैं रोज़ चाँदी का सिक्का उठाता हूँ। यह देख वे लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं और मुझ पर हँसते हैं। मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ।”
पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा, “पुत्र, जब तुम्हें ज्ञात है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो। क्यों स्वयं को उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है।”पुत्र हँसते हुए बोला, “पिताश्री मेरे साथ चलिए, मैं आपको कारण बताता हूँ।”
फिर वह पंडित जी को शहर के आखरी छोर तक ले गया, जहाँ कई बेघर व गरीब लोग रहते थे। उस लड़के को देखकर उन सभी के चेहरे खिल उठे, व कईयों ने प्रेम से उसका अभिवादन किया। पंडित जी को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने लोग मेरे बेटे को आशीर्वाद दे रहे हैं। फिर पुत्र ने कहा, “पिताश्री, इनमें से अधिकतर लोगों को ढंग का काम नहीं मिल पाता, और कईयों को दिन भर में खाना भी मुश्किल से मिलता है। हर बार जब मैं चाँदी का सिक्का उठाता हूँ, इनमें से किसी एक को आकर दे देता हूँ। इनके लिए उसका मूल्य इतना है कि एक ही सिक्के से कई सारे लोगों का भोजन हो जाता है। कुछ लोग पेट भर खाने के बाद काम ढूँढने भी जा पाते हैं।
पिताश्री! राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह प्रश्न पूछना ,एक खेल बन गया है। अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते हैं और मैं चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ। जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया, उस दिन यह खेल बंद हो जायेगा, और तब मैं इन्हें कुछ नहीं दे पाऊँगा। इसलिए मैं कभी सोने का सिक्का नहीं उठाता।”
पंडितजी को पुत्र की बात समझ आ गई और उस पर गर्व भी हुआ। किंतु उन्हें लगा कि राजा को भी सत्य मालूम होना चाहिए। तो वे पुत्र को लेकर राजा के दरबार पहुँचे, जहाँ लड़के ने सारी बात राजा को बताई और उन्हें समझाया कि वह चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता था।
पूरी बात जानकर राजा बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोने के सिक्कों से भरा संदूक मंगवाया और उसे पंडितजी के पुत्र को देते हुए बोला “असली विद्वान तो तुम हो।”
फिर उन्होंने अपने दरबानों से कहकर उन बेघर लोगों के लिए भी सहायता की व्यवस्था करवायी।
अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करना व्यर्थ है। बस कर्म करते रहना चाहिए। जब वक़्त आएगा, तो पूरी दुनिया को पता चल जायेगा कि हम कितने सामर्थ्यवान हैं। उस दिन हम सोने की तरह चमकेंगे और पूरी दुनिया हमारा सम्मान करेगी।

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