कहानी : मां का नमक

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कहानी : मां का नमक
कहानी : मां का नमक

कहानी

मां का नमक
पापा दिल्ली में टेलीफोन विभाग में सुपरवाइजर थे। हम लोग मां के साथ गांव में रहते थे। वर्ष 2007 में पापा की सर्विस पूरी हो गई और पेंशन मिलने लगी। 2012 में पापा की तबीयत अचानक बिगड़ी और उनका निधन हो गया। कुछ माह बाद मां की पेंशन के लिए ऑफिस में बात की तो पता चला कि मां को लेकर दिल्ली ऑफिस जाना पड़ेगा। एक तो मैं कभी शहर गया नहीं था और दूसरे स्वभाव से ऐसा था कि मां से बात बात पर नाराज होता था। इसलिए मुझे यह काम बहुत भारी लगा। दिल्ली जाने की बात मां को बताई तो वह कहने लगी बेटा परिवार के गुजारे के लिए पेंशन का ही सहारा है।दिल्ली तो चलना ही पड़ेगा। परेशान मत हो कहीं एक-दो रात गुजार ली जाएंगी।काम तो कराना ही है।
मां की बात सुनकर मैं कड़क आवाज में बोला,”वह कोई गाव नहीं है। शहर है कहां रुकेंगे?’ मां बोली,” बेटा वहां भी तो धर्मशालाएं होंगी। मैं फिर झल्लाकर बोला,तुम चुप रहो मेरा दिमाग मत खराब करो। ना रहने का ठिकाना ना ऑफिस का पता ऐसे में मैं तुम्हें लेकर कहां भटकूगा।‘ वो मेरी बात सुन कर खामोश हो गई।
अगले दिन मैंने दिल्ली जाने के लिए ट्रेन का टिकट कटा लिया। घर आया और मां से ऐठकर कहा कि आज शाम को दिल्ली चलना है। मां पूछने लगी बेटा रास्ते का खाना बना लूं। मैं फिर सुन कर बोला कि वही कहीं होटल में खा लेंगे। मां कहने लगी कि वहां पैसा बहुत लगेगा। तो मैंने कहा कि जो मर्जी आए करो। मां ने रास्ते के लिए पूड़ी सब्जी और पेड़े बनाए। अगली सुबह हम लोग दिल्ली पहुंच गए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कहां जाएं। एक ऑटो वाले से पूछ कर मैं टेलीफोन विभाग के ऑफिस पहुंचा। इसके बाद मैंने वहां तैनात गार्ड से अपनी समस्या बताई तो वह कहने लगे कि पीछे वाले कमरे में तुम्हारा काम होगा। संबंधित अधिकारी के पास मां के साइन करवाने पहुंचा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।वहा माँ जैसे बहुत से लोग लाइन में खड़े थे। मैं फिर भड़क कर मां से बोला, देखा मेला सब लोग साइन कराने आए हैं। माँ ने धीरे से कहा, बेटा अब तो आ ही गए हैं,सब भगवान पार करेगा। मुझे भूख लगी थी। मैंने नाराजगी भरे स्वर में कहा’ चलो पहले खाना खाएंगे।उस ऑफिस के बगल में एक शानदार शीशेदार कमरा था। मैंने मां से कहा जहां को नहीं है। यहीं बैठ कर खाना खा लेते हैं।
माँ ने सब्जीवाली कटोरी निकाल कर देखा तो वह खराब हो गई थी। इसके बाद मैंने पूरी के साथ नमक के पेड़े खाने के लिए दिए। अभी हम लोगों ने पूरी खाना शुरु कर ही किया था कि 2 आदमी गेट खोल कर अंदर आ गए। मैं और मैं यह देख कर डर गए। उन लोगों ने हमारी मनोदशा भाव ली और कहने लगे कि आप आराम से खाना खाइए। उनमें से एक सज्जन बोले,’ माजी क्या साइन करवाने आई है। मां ने हा में सिर हिला दिया।फिर दूसरे सज्जन बोल पड़े मां जी क्या बना कर लाई हो। बहुत नसीब वालों को मां के हाथ का खाना खाने को मिलता है।उनकी बात सुनकर मां बोली, बेटा मां कह रहे हो तो एक पूरी मेरे हाथ कि तुम भी खा लो। यह सुनकर वे लोग बहुत खुश हुए।मां ने उन्हें पूरी के साथ नमक और पेड़े दिए। वे लोग खाना लेकर बगल वाले कमरे में चले गए।कुछ देर बाद दोनों आए और खाने की तारीफ करते हुए बोले, माजी कितना स्वादिष्ट खाना कितना अच्छा नमक था। ऐसे नमक तो जीवन में पहली बार खाया है। उन लोगों की बातें सुनकर मैं मन ही मन बुद बुदाने लगा कि मां के पास रहते हुए कभी मां का सम्मान नहीं किया।मां को पहचान नहीं पाया।एक ये है जो मेरी मां को अपनी मां की तरह सम्मान दे रहे हैं।
मेरा मन ग्लानि से भर गया।उनमें से एक सज्जन भोले माजी पाच मिनट बेठो मैं अभी आ रहा हूं,आपका काम मैं करवा दूंगा।“थोड़ी देर बाद वो लोग आए और एक फार्म भरवाया।इसके बाद मां को लेकर ऑफिस गए और 10 मिनट में सारा काम करा दिया।मेरे लिए यह सब किसी स्वपन से कम नहीं था।माँ और मैं बहुत खुश थे।मां उन लोगों को आशीर्वाद दे रही थी। मैंने सोचा कि मां के नमक में इतना दम है कि चुटकी में हमारा काम हो गया।मां ने उन लोगों से कहा बेटा आपने बहुत बड़ा एहसान किया है।पर वह बोले माजी हमने आपका नमक खाया है। हम आपके बेटे जैसे हैं यह सुनकर मेरा सिर शर्म से झुक गया।तब एहसास हुआ कि मां मुझसे कितना प्यार करती हैऔर उन के चरणो में ही स्वर्ग है।मैंने उसी दिन तय किया कि कभी मां से गलत तरीके से बात नहीं करूंगा।अब बुजुर्गों का सम्मान करना मेरी आदत का हिस्सा बन गया है।वास्तव में मां के नमक ने मेरी सोच बदल दी।

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