घर का मंदिर केसा हो

0
1802
जानिए कैसा हो आपका पूजा स्थल
जानिए कैसा हो आपका पूजा स्थल

वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा स्थल पूर्व-उत्तर या ईशान कौण का ही उत्तम होता है।नारद पुराण में ईशान्य में मंदिर रखना और प्रतिमाओं का मुख पश्चिम में रखना उत्तम माना गया है।ईशान कोण भगवान शिव की समस्त देवों के गुरु बृहस्पति तथा मोक्ष कारक केतु की दशा मानी गई है।इन सभी कारणों से इसे सबसे शक्तिशाली दिशा माना जाता है।यह अत्यंत शुभ जगह है।ईशान कोण में भले ही पूजा स्थल ना हो किंतु इस दिशा में कभी कूड़ा-करकट झाड़ू, जूते आदि ना रखें।इस दिशा में की गई सभी पूजा साधना सिद्ध होती है तथा फलदायक होती है।अगर आप एक से अधिक देवी-देवता की पूजा करते हो तो अपनी पूजा की जगह के बीच में श्री गणेश, ईशान कोण में विष्णु या उनके अवतारी श्री कृष्ण, अग्नि कोण में भगवान शिव, सूर्य तथा वायव्य कोण में सूर्य की स्थापना करनी चाहिए।जानिए कैसा हो आपका पूजा स्थल

पुराणों के अनुसार सबसे पहले सूर्य की और उसके बाद क्रम से श्री गणेश, मां दुर्गा, भगवान शिव और विष्णु की पूजा करनी चाहिए, पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जिस किसी भी काम को किया जाता है उसका परिणाम उत्तम होता है।इसी कारण पूर्व दिशा की ओर मुंह करके की गई पूजा अच्छा फल देने वाली होती है।जो व्यक्ति मोक्ष की कामना लेकर पूजा करते हैं उन्हें ईशान कोण में पूर्वाभिमुख हो भगवान की पूजा या ध्यान करना चाहिए।ऐसी पूजा में प्रतिमाओं तथा चित्रों का मुख पश्चिम दिशा की ओर होता है जो लोग सांसारिक सुख-साधन की कामना से पूजा करते हैं उन्हें ईशान कोण में ऐसे स्थान पर प्रतिमाओं के चित्रों की स्थापना करनी चाहिए जिसमें प्रतिमाओं का मुख पूर्व की ओर हो और साधक परिश्रम की ओर मुंह करके बैठे।ईशान कोण में निर्मित पूजा स्थल पर अग्नि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।यह जल तत्व की दिशा है इसलिए यहां अधिक समय तक दीप, धुप बती  नहीं जलानी चाहिए।इसके परिणाम ठीक नहीं होते।ईशान कोण में भारी समान तथा उचा सामान नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में भारी एवं उचा मंदिर नहीं बनाना चाहिए।घर के अंदर मंदिर रखना ही चाहते हैं तो पूर्व की दीवार से से 7 इंच दूरी पर हल्का सा छोटा लकड़ी का मंदिर बना कर रखा जा सकता है उस दीवार में आला बनवाकर उसमें मूर्ति रखी जा सकती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here