भाग – 4 : 35 ए पर महत्वपूर्ण लेख
यूं ही नहीं मजबूर हुए इमरान खान, इन 5 वजहों से छेड़ा शांति राग …भारी पड़ रही मोदी सरकार की कूटनीति, दुनिया में पड़ सकता है अलग-थलग।
नई दिल्ली. पाकिस्तान आतंकियों की आड़ लेकर भारत पर हमला करता रहा है। शायद उसे उम्मीद थी कि हर बार की तरह भारत इस बार भी आतंकी हमले के बाद बातचीत की राह पर लौट आएगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। भारत ने पाकिस्तान को चौंकाते हुए उसके बालाकोट स्थित सबसे बड़े आतंकी कैंप को हमले सेनेस्तानाबूदकर दिया और उसे इसकी भनक भी नहीं लगने दी। इसके बाद इमरान खान ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए घात लगाकर भारतीय वायुसेना पर हमला किया और एक पायलट को बंधक बनालिया, जिसे जेनेवा कन्वेंशन के तहत पाक को अब छोड़ना पड़ रहा है।
ब्लैक लिस्ट होने का डर –
दरअसल पाकिस्तान को इन दिनों कर्ज की काफी जरूरत है। हालांकि आतंकियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के आरोप के चलते उसे कर्ज मिलने में मुश्किल होती है। हाल ही में आतंकी फाइनैंसिंग को रोकने के लिए काम करने वाली संस्था फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में बरकरार रखा है। बता दें कि FATF की ग्रे या ब्लैक लिस्ट में डाले जाने पर देश को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में काफी कठिनाई आती है। इसलिए पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर खुद को शांतिप्रिय देश होने का दिखावा कर रहा है, जिसे उसे ब्लैक या फिर ग्रे लिस्ट से बाहर निकाल दिया जाए।
छिटक सकता है निवेश –
बता दें कि पाकिस्तान में चीन,यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों ने निवेश का वादा किया है। इनमें से चीन जोर-शोर से निवेश कर रहा है, जबकि सउदी अरब ने 20 बिलियन डॉलर निवेश का वादा किया है। साथ ही यूएई की तरफ से भी निवेश का वादा किया गया है। लेकिन युद्ध होने पर पाकिस्तान से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) चला जाएगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में निवेश की दर महज 15 फीसदी है। युद्ध के हालात में कोई भी देश निवेश नहीं करना चाहेगा। ऐसे में पाकिस्तान जैसा देश ज्यादा दिन तक खुद को चला नहीं पाएगा।
विदेशी मुद्रा भंडार हो जाएगा खाली –
युद्ध की स्थितिमें पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो जाएगा। पाक के पास महज 18 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत इस मामले में पाक से 20 गुना आगे हैं। ऐसे में पाक के लिए जरूरी वस्तुओंकाआयात करना मुश्किल हो जाएगा। बता दें कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार पाकिस्तान के मुकाबले 9 गुना ज्यादा है। आर्थिक जानकारों की मानें तो युद्ध होने पर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी करेंसी की कीमत गिरकर 200 रुपए प्रति डॉलर हो सकती है।
चीनी निवेश बना मुसीबत-
रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो भारत को मालूम है कि पाकिस्तान मौजूदा वक्त में बड़ी जंग में शामिल होने की स्थिति में नहीं है। उस पर अमेरिका समेत उसके सदाबहार दोस्त चीन का दबाव है। दोनों ही देश के शीर्ष नेतृत्व की ओर से पाकिस्तान को युद्ध न करने की सलाह दी जा रही है। दरअसल चीन ने पाकिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर करीब 26.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिसे वो 40 बिलियन डॉलर कर्ज और मुनाफे के साथ पाकिस्तान से वापस करेगा। हालांकि इसके लिए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का मजबूत होना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो चीन का पैसा फंस सकाता है।
चालू खाता घाटे की दिक्कत –
पाकिस्तान को टैक्स से केवल 27 बिलियन डॉलर रेवेन्यू मिलता है, जबकि कुल बजट का 26 फीसदी 4200 बिलियन डिफेंस पर खर्च कर देता है। साल 2018 की सितंबर माह की अंतिम तिमाही में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा (CAD) बढ़कर 60 फीसदी हो गया है। जो युद्ध के दिनों में घटकर निगेटिव में जा सकता है।
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