और गांधी जी ने
ईसाई बनने से इंकार कर दिया !
दुनिया को क्रॉस के तले लाने की जिद्द में जुटी ईसाई मिशनरियों ने किसी समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी धर्म बदलने का सुझाव दिया था और दावा किया था कि दुनिया को प्रभू ईसा मसीह के झंडे तले इक्ट्ठा करके ही धार्मिक एकता स्थापित की जा सकती है। प्रभू ईसा मसीह को महान शिक्षक मानने वाले हिंदुत्व के पुरोधा गांधी जी ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि दुनिया में धार्मिक एकता एक ही धर्म से नहीं बल्कि सभी धर्म समूहों की एकता से आएगी।
अमरीका में महात्मा गांधी का हस्तलिखित एक पत्र बिक्री के लिए रखा गया है। इसे राब कलेक्शन 50 हजार डॉलर की कीमत पर नीलाम कर रही है। महात्मा गांधी ने ये खत ईसा मसीह के बारे में लिखा था। 6 अप्रैल 1926 के हस्ताक्षर के साथ ये चि_ी महात्मा गांधी ने अमरीका के धार्मिक नेता मिल्टन न्यूबैरी फ्रांज को लिखी थी। गांधी ने फ्रांज के नाम ये जवाबी पत्र साबरमती आश्रम से लिखा था। दरअसल, उनसे ईसाइयत के बारे में पढऩे का आग्रह किया गया था।
पत्र में गांधी ने लिखा, ‘प्रिय मित्र, मुझे आपका पत्र मिला। मुझे डर है कि मेरे लिए ये संभव नहीं है कि आपकी ओर से भेजे गए पंथ का मैं सदस्य बन जाऊं। सदस्य को ये मानना पड़ता है कि अदृश्य वास्तविकता का सर्वोच्च स्वरूप ईसा मसीह हैं। अपने तमाम प्रयासों के बावजूद मैं इस कथन की सच्चाई को महसूस नहीं कर पाया। मैं इस विश्वास से आगे नहीं बढ़ पाया हूं कि ईसा मसीह मानवता के एक महान शिक्षक थे। क्या आपको नहीं लगता कि धार्मिक एकता किसी एक पंथ की सामूहिक सदस्यता से नहीं आएगी बल्कि हर पंथ के एक-दूसरे में विश्वास से आएगी?’
हिंदुत्व की मूल भावना भी यही है कि सच्चाई केवल एक व्यक्ति या पंथ या ग्रंथ के पास नहीं हो सकती। दूसरे अर्थों में कहें तो कोई एक ग्रंथ या पंथ यह दावा नहीं कर सकता कि जो वह कह रहा है वही एकमात्र सत्य है। सत्य किसी एक व्यक्ति या पंथ की धरोहर नहीं हो सकती, लेकिन दुनिया में सामी पंथ आज तक यही दावा करते रहे हैं कि जो उनके ग्रंथों में लिखा है और जो उनके पैगंबरों ने कहा है केवल वही सत्य है। दुनिया को अगर ईश प्राप्ति करनी है तो केवल उन्हीं के पास आना होगा। देखा जाए तो आज वैश्विक आतंकवाद के पीछे यही भावना काम कर रही है।
इस्लाम तलवार के जोर पर दुनिया में कुर्रान की सच्चाई थोप रहा है तो ईसाई सेवा के माध्यम से बाईबल की। लेकिन हिंदुत्व विश्वास करता है कि ‘एकम् सद् विप्र: बहुदा वदंति’ अर्थात ईश्वर एक है परंतु विद्वान उसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं। सामी पंथ ने दुनिया को टकराव के मार्ग पर धकेला है परंतु हिंदुत्व समरसता का भाव सिखाता है। यही कारण है कि हिंदू किसी को धर्म परिवर्तन के लिए विवश नहीं करता और न ही इसके लिए रिश्वतखोरी करता। हिंदुत्व सभी धर्मों का सम्मान करता है और सभी मार्गों का एक ही लक्ष्य स्वीकारता है। इसी के चलते गांधी जी ने धर्म परिवर्तन करने की जरूरत नहीं समझी और ईसाई बनने से इंकार कर दिया।
राकेशसेन वरिष्ठ पत्रकार