जानिए भूल जाना केवल एक बहाना ही हो सकता है

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जानिए खुद को कहां भूले जा रहे हैं
जानिए खुद को कहां भूले जा रहे हैं

 

खुद को कहां भूले जा रहे हैं

भूल जाना केवल एक बहाना ही हो सकता है।बाहोश तो ऐसे हालात गफलत के कहलाते है।अपनी चीजों को रख कर भूल जाने की घटना अक्सर लोगों के अनुभवों का हिस्सा होती है।शायद जिंदगी की बढती उलझने दिमाग को इतना थका देती है कि वह अपना किया काम भी दर्ज करना जरूरी नहीं समझता।इसी तरह कभी पैर भी बागी हो जाते हैं।गौर करें, तो बेचैनी लाजमी है।यह कैसी हालत है कि बेहोश है, लेकिन अनजान है, बेखबर है।जो कर रहे है, उसे पूरी होशमदी में कर रहे है, लेकिन सोचने पर याद नहीं कर पा रहे।जानते नहीं कि हाथों ने कब चश्मा उठा कर कही  रख दिया या कदम कहीं ले चले, जहां की दिशा ही नहीं मालूम।मन का गतिविधियों से नाता उतना पक्का न हो, तो दोनों अपनी-अपनी दुनिया में भटकने निकल जाते है।इस सूरत में जहां खुद से ग़ाफ़िल हो जाएं, वह शिकायतें ही ज्यादा होती हैं।कुछ लोग इसे बढ़ती उम्र की निशानी भी मानते हैं।लेकिन इस गफलत का उम्र से वास्ता नहीं है  हा,इस दौर-ए -जहां से जरूर लगता है। खुद को कहां भूले जा रहे हैं

जो खुद ना देखे उसे दूसरों की नजरें उधार लेनी पड़ती है।और जाहिर है, दूसरों के नजरिए भी।ऐसे में केवल रखी हुई चीज़ों से ही नहीं, इंसान खुद से भी अनजान मिलता है।कभी खुद की सूरत कम लुभावनी  लगती है, कभी रंग दवा-सा मालूम होता है, कभी जिंदगी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, तो कभी दूसरे कसोटी पर कम रह जाते हैं। खुद को कहां भूले जा रहे हैं

बाहोश दिखने वाले,लेकिन खुद ही से बेखबर लोगों का हिसाब है यह।अपनी ही चीज रखकर भूल जाने पर  पर दूसरों से उसका पता पूछने जैसा ही है, अपने बारे में लोगों से राय दरियाफ्त करना।या दूसरो के नजरिये से अपनी दुनिया को देखना।बाहोश रहे और बाखबर भी,तभी खुद से मुलाकात होगी।

 

 

 

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