टीकाकरण के बारे में बहस
आजकल, पंजाब में एम.आर. टीकाकरण मुहिम संबंधी चर्चा जोरों पर है।पोस्ट के द्वारा अपना पक्ष आम भाषा में संक्षेप में लिख रहा हूं ।
सबसे पहले तो सोशल मीडिया में फैलाई जा रही कुछ अफवाहों का विरोध करना चाहूंगा। इस मुहिम संबंधी मेरे नाम पर डाले गए उन संदेशों का मैं विरोध करता हूं जो इस मुहिम को किसी धर्म विशेष के विरुद्ध बता रहे हैं या इसको बांझपन और नामर्द के साथ जोड कर पेश कर रहे है, जो की सच नही है। कुछ लोग मुझे टीकाकरण का विरोधी बता रहे हैं जोकि मैं नहीं हूं। मैं तो मौजूदा एम.आर.टीकाकरण मुहिम के लिए दी जा रही है दलीलों और इसमें उपयोग हो रहे तरीकों पर सवाल उठा रहा हूं। मैं बच्चों के शरीर की समूहिक संक्रामक बीमारियों के साथ लड़ने की शक्ति (इम्युनिटी) बढ़ाने के पक्ष में हूं, ना कि सिर्फ उनको कुछ ही बीमारियों के विरुद्ध जिनके वैक्सीन बन चुके है। मार्केट में ऐसे अनेक इंजेक्शन आ चुके हैं जिनका असरदायक या सुरक्षित होना शक के में है। इनको उत्पादक सिर्फ व्यापारिक हितों के लिए ही बेच रहे हैं। टीकाकरण के इन तरीको के ऊपर पूरी दुनिया में विज्ञानिक दलीलों के आधार पर सवार उठाए जा रहे हैं। मैं ठोस विज्ञानक दलील के आधार पर तर्कसंगत टीकाकरण के हक में हूं।
मैं पोलियो की बीमारी के खात्मे के लिए पोलियो के टीकाकरण की महत्ता को बिल्कुल भी कम नहीं देखता। मैंने तो सिर्फ इस बात पर सवाल उठाया है जब बच्चा 5 डोजो के साथ बीमारी से सुरक्षित हो जाता है तो उसको अब तक 30 -40 फालतू डोजे क्यों पिला दी गई है, और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। इसके बुरे असर होने के विज्ञानिक सबूत आ रहे हैं।
एम.आर टीकाकरण मुहिम के बारे
खसरा
मेरी राय में स्कूल के बच्चों को खसरे का इंजेक्शन लगाने की कोई तुक नहीं। इस उम्र में खसरे की बीमारी सेहतमंद बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती -बल्कि यह उसको उम्र भर के लिए इस खतरे से उसको निजात मिल जाती है, खसरे के इंजेक्शन द्वारा पैदा की गई इम्युनिटी आधी अधूरी होती है जिस कारण मरने तक यह इंजेक्शन कुछ सालों के बीच में बार बार लगाना पड़ेगा।
छोटे बच्चों के लिए खसरे का टीका सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होना चाहिए। मां बाप को खसरे की बीमारी के बारे में सारा ज्ञान और खसरे के टीके के सब लाभ हानि का ज्ञान देने के बाद ही, मां-बाप की सहमति लेकर के खसरे का टीका लगवाना चाहिए। अगर मां-बाप कहेंगे वह खसरे का इंजेक्शन लगवाने की बजाय खसरे की बीमारी को चुनना पसंद करते हैं, क्योंकि खसरे की बीमारी उम्र भर के लिए शक्तिशाली इम्युनिटी देती है जबकि खसरे का टीका आधी अधूरी इम्युनिटी देता है उनको इंजेक्शन लगवाने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। ज्ञान के आधार पर आखरी फैसला लेने का हक मां बाप का होना चाहिए।
रूबेला जर्मन खसरा
केवल गर्भवती मां को यह बीमारी गर्भ के पहले 3 महीने में हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है। यह बीमारी और किसी को कुछ नहीं कहती। रूबेला का टीका सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होना चाहिए। मां-बाप को इस बीमारी के बारे में सारा पता होना चाहिए। केवल विवाह से पहले यह इंजेक्शन लगाना चाहिए। सबसे बढ़िया होगा अगर इंजेक्शन लगवाने से पहले एक साधारण टेस्ट करवा लिया जाए जिससे यह पता चल जयगा की उस औरत को पहले से ही इस बीमारी के विरुद इम्युनिटी है।बहुत सारी औरतों को गर्भ धारण करने की उम्र तक यह बीमारी चुपचाप हो चुकी होती है जिसके कारण वह पूरी उम्र के लिए इस बीमारी से मुक्त हो जाती है, क्यों की उसके सरीर में इस के विरुद इम्युनिटी बन गयी थी,और उनको रुबेले का इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं,अगर टेस्ट आए की सरीर में इम्युनिटी मजूद ना हो तो, विवाह से पहले यह इंजेक्शन लगवाया जा सकता है। टेस्ट की सहूलत सरकारी हस्पताल मे मुफ्त देनी चाहिए।
बचपन में यह इंजेक्शन लगवाने की कोई जरूरत नहीं। बचपन में लगे टीके की इम्युनिटी गर्भधारण करने की उम्र तक खत्म हो जाएगी और उसका कोई लाभ नही होगा। इंजेक्शन में दी गई इम्युनिटी आरजी और अधूरी होती है।
अमर सिंह आजाद