भगवान शिव ने माँ पार्वती को बतलाए थे-जीवन के पांच अमूल्य सूत्र !!भगवान शिव ने माँ पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बतलाई हैं,जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की अमूल्य सूत्र सम्मिलित हैं।भगवान शिव ने माँ पार्वती को ५ ऐसी बातें बतलाई थीं जो प्रत्येक मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें समझकर उनका पालन सभी को करना चाहिए-
१. क्या है सबसे बड़ा धर्म व अधर्म ?
नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्॥
मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना व सत्य का साथ देना तथा सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना व उसका साथ देना।अतः हर किसी को अपने मन, अपनी वाणी तथा अपने कर्मों में सदैव उन्हीं को सम्मिलित करना चाहिए, जिनमें सत्यता हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना अथवा किसी भी तरह से असत्य का साथ देना मनुष्य का सबसे बड़ा अधर्म है।
२. स्वयं को साक्षी मानकर कार्य करना
आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे॥
मनुष्य को अपने प्रत्येक कार्य का साक्षी स्वयं ही बनना चाहिए, चाहे वह अच्छा कर्म करे या बुरा। उसे कभी भी ऐसा विचार नहीं करना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है। यदि मनुष्य के मन में गलत कार्य करते समय यही भाव होता है तो वह बिना किसी भी डर के पाप कर्म करता है। यदि मनुष्य सदैव यह एक भाव मन में रखेगा कि वह अपने सभी कर्मों का साक्षी स्वयं ही होता है, तो वह कोई भी पाप कर्म करने से स्वयं को रोक लेगा।
३. ये तीन कार्य कभी न करें
मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्॥
किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए क्योंकि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है।मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए, न अपने मुख से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए तथा न ही ऐसा कोई कार्य करना चाहिए जिससे दूसरों को कोई कष्ट या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न केवल जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगने पड़ते हैं बल्कि मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म में भी यातनाएं झेलनी पड़ती हैं।
४. अनासक्ति रखना
संसार में प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति होती है। इस आसक्ति का जाल ऐसा होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही कठिन होता है तथा इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता सम्भव नहीं होती, अतः भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है,
दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते।
अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते॥
यदि मनुष्य को किसी व्यक्ति या परिस्थित में आसक्ति हो रही हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही है तो मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना आरम्भ कर देना चाहिए तथा यह विचार करना चाहिए कि कुछ पल की आसक्ति सफलता की बाधक बन रही है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य आसक्ति के जाल से छूट जाएगा तथा अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने लगेगा।
५. तृष्णाओं का त्याग
नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते॥
भगवान शिव मनुष्यों को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि मनुष्य की तृष्णा (यानि इच्छाओं) से बड़ा कोई दुःख नहीं होता तथा इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है।मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य के मन में कई अनावश्यक तृष्णायें होती हैं तथा यही तृष्णायें मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। अतः यह आवश्यक है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और तृष्णाओं में अंतर समझे तथा अनावश्यक तृष्णाओं का त्याग कर शांत मन से जीवन बिताए।