नुकसानदेह है अधिक निर्भरता

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नुकसानदेह है अधिक निर्भरता
नुकसानदेह है अधिक निर्भरता

नुकसानदेह है अधिक निर्भरता
अक्सर हम अपने करीबी लोगों से सलाह लेते हैं लेकिन हमेशा निर्भर रहने की प्रवृत्ति डीपीटी (डिपेंड पर्सनालिटी डिसऑर्डर)नामक मनोविज्ञानिक समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकती है। इसलिए शुरू से ही हमें सचेत ढंग से इस गलत आदत को नियंत्रित करना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति अपना हर निर्णय लेते हुए बहुत ज्यादा डरता है और दूसरों से पूछे बिना अपनी मर्जी से कोई कदम नहीं उठा पाता तो यह स्थिति चिंताजनक हो सकती है।ऐसी आदतें भविष्य में डीपीडी की वजह बन सकती हैं।
प्रमुख लक्षण: आमतौर पर ऐसे लोग दब्बूपन की हद तक अतिशय विनम्र और आज्ञाकारी होते हैं।
छोटी-छोटी बातों से इनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं।
संबंध खराब होने के डर से दूसरों की हर बात मान लेते हैं।
निर्णय लेने से डरते हैं और कोई भी बात दूसरों से बार-बार पूछते हैं।
अति संकोची होते हैं।इस वजह से करीबी लोगों के सामने भी अपनी अहमियत जाहिर नहीं कर पाते।
ऐसे लोग बहुत संवेदनशील होते हैं और अपनी आलोचना सुनकर जल्दी उदास हो जाते हैं।
आत्मविश्वास की कमी डीपीडी का प्रमुख लक्षण है पर यह जरूरी नहीं कि कमजोर मनोबल वाले हर व्यक्ति को ऐसी समस्या हो।
प्रमुख वजह: एग्जावट्टी डिसऑर्डर से ग्रस्त लोग अत्यधिक चिंता की वजह से दूसरों पर निर्भर रहने लगते हैं यही आदत बाद में डीपीडी के लक्षणो में परिवर्तित हो सकती है।
जिन बच्चों की परवरिश अति सरक्षण भरे माहौल में होती है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है।
आमतौर पर 20-30 आयु वर्ग के लोगों में इसकी आशंका सबसे अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में प्रेम कैरियर और विवाह आदि से जुड़ी कई उलझने व्यक्ति के सामने आती है।
क्या है उपचार
अगर कोई लक्षण नजर आएं तो चिंतित होने की बजाय व्यक्ति को सबसे पहले क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए, वहां विशेष पर्सनैलिटी प्रॉब्लम सॉल्विंग और हैंडलिंग टेस्ट लेने के बाद ही करते हैं कि वह उस व्यक्ति को ऐसी कोई समस्या है या नहीं? दिलचस्प बात यह है कि इस समस्या का ट्रीटमेंट हमेशा होता है क्योंकि अगर लंबे समय तक उपचार चलेगा तो व्यक्ति को भावनात्मक रूप से निर्भर हो जाएगा।इस समस्या को दूर करने के लिए कोनेगेटिव और बिहेवियर थेरेपी दी जाती है, ताकि ऐसे लोग दूसरों के सामने भी बेझिझक अपनी बात रख सके।अगर स्थिति ज्यादा गंभीर ना हो तो आमतौर पर इस समस्या से ग्रस्त लोगों को दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती।काउंसलिंग और बिहेवियर थेरेपी की मदद से लगभग 3 महीने के भीतर ही व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव नजर आने लगते हैं।
यह भी है जरूरी
बच्चों की परवरिश इस ढंग से होनी चाहिए की रोजमर्रा से जुड़े छोटे-छोटे कार्य में वह खुद ही करने की कोशिश करें।इससे उनकी आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होगी।बच्चों की समझ और क्षमता के अनुकूल उन्हें कुछ निर्णय स्वयं लेने दे।इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।अगर कभी आपको ऐसा महसूस हो कि दूसरों पर आपकी भावनात्मक निर्भरता बढ़ रही है तो इसे लेकर अपने मन में कोई ग्लानि ना रखें बल्कि सचेत ढंग से अपने सभी निर्णय खुद लेने की आदत विकसित करें।संतुलित सोच ऐसी समस्याओं से बचाव में मददगार होती है।

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